ठलुआ क्लब आप सभी ठलुओ का हार्दिक स्वागत करता है......

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

फेसबुक का जनक एक भारतीय है

सोशियल वेबवाइट एफबी यानी फेसबुक के यूजर्स में से एक फीसदी लोगों को यह पता नहीं होगा कि इसके फाउंडर मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि अप्रवासी भारतीय दिव्य नरेंद्र है। मार्क ने तो उनके आइडिए को कॉपी करके एफबी बनाई थी।

भारतीय"बिना फेसबुक जिंदगी बेनूर"आज के युवाओं सोशियल वेबसाइट फेसबुक के पति कुछ ऎसा ही नजरिया रखते हैं। यही वजह है कि दुनिया की सबसे फेवरेट साइट्स में एफबी (फेसबु

क) का नाम शुमार है। इसके फाउंडर के तौर पर मार्क जुकरबर्ग को दुनिया में ऎसी अनोखी प्रतिभा का धनी मान लिया गया है, जिन्होंने कॉलेज के दिनों में ही ऎसा कालजयी आविष्कार कर दिखाया।

उनके जीवन पर फिल्म भी बन चुकी है, जिसने सफलता के झंडे गाड़े हैं। लेकिन फेसबुक की असली सच्चाई जानकर आपको खासी हैरानी हो सकती है और खुशी भी। फेसबुक के असली निर्माता मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि अप्रावासी भारतीय दिव्य नरेंद्र हैं, जिनके आइडिए को कॉपी कर मार्क ने फेसबुक बना डाली और दुनिया में शोहरत हासिल कर ली। फेसबुक के पीछे के इंडियन फेस को आइए जानें करीब से।

महज 29 साल के दिव्य नरेंद्र अमरीका में रहने वाले अप्रावासी भारतीय हैं। उनके माता-पिता काफी समय पहले से अमरीका में ही आ बसे हैं। दिव्य का जन्म 18 मार्च 1982 को न्यूयार्क में हुआ था। जाहिर है कि दिव्य के पास भी अमरीकी नागरिकता है। उनके डॉक्टर पिता बेटे को भी डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन दिव्य इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका सपना तो था उद्यमी बनने का। अपने दम पर दुनिया को कुछ कर दिखाने का।

मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक को अपना बताकर दुनियाभर में विस्तार शुरू किया तो हंगामा हो गया। दिव्य और उनके दोस्तों ने कोर्ट में उनके खिलाफ केस ठोक दिया। दिव्य का कहना था कि यह उनका आइडिया था। जुकरबर्ग को कहीं फ्रेम में थे ही नहीं। बाद में उन्होंने दिव्य और दोस्तों के आइडिए को कॉपी कर फेसबुक शुरू कर दी। अमरीकी कोर्ट ने पूरे मामले की गहन सुनवाई की। कोर्ट ने इसके बाद दिव्य के दावे को सही पाया और जुकरबर्ग को आदेश दिया कि वे हर्जाने के तौर पर दिव्य और उनके दोस्तों को 650 लाख डालर की राशि अदा करें।

जाहिर सी बात है कि दिव्य इससे संतुष्ट नहीं थे। उनका कहना था कि हर्जाने का राशि फेसबुक की मौजूदा बाजार कीमत के आधार पर तय की जानी चाहिए। हाल ही में गोल्डमैन स्नैच ने फेसबुक की बाजार कीमत 50 बिलियन डॉलर आंकी थी। उन्होंने एक बार फिर मुकदमा दायर किया, लेकिन अमरीकी कोर्ट ने पिछले फैसले को ही बरकरार रखा। अमरीकी कोर्ट के फैसले के आईने में देखा जाए तो जो प्रसिद्धि आज मार्क जुकरबर्ग को मिली है, उसके सही हकदार दिव्य नरेंद्र थे।


फेसबुक का जन्म असल में हार्वर्ड कनेक्शन नाम की सोशल साइट के डिजाइन के दौरान हुआ था। दिव्य इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और काफी आगे बढ़ चुके थे। लंबे समय बाद जुकरबर्ग एक मौखिक समझौते के आधार पर इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बने थे। यहां काम करने के दौरान उन्होंने पूरी प्रक्रिया देखी और आखिर उस प्रोजेक्ट को फेसबुक नाम देकर रजिस्टर्ड करा लिया। जब उन्होंने इसे अमली जामा पहनाना शुरू किया तो दिव्य और उनके दोस्तों ने तीखा विरोध किया। इसे लेकर उनकी जुकरबर्ग से खासी तकरार भी हुई। आखिर मामला हद से आगे बढ़ता लगा तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ने हस्तक्षेप कर दिव्य को अदालत जाने की सलाह दी। अदालत ने फैसला जरूर दिया, लेकिन इंसाफ नहीं कर पाई।

जुकरबर्ग के साथ मुकदमेबाजी से दिव्य निराश जरूर हुए, लेकिन उन्होंने खुद को हताश नहीं होने दिया। उन्होंने साथ ही दूसरे प्रोजेक्ट सम जीरो पर काम शुरू कर दिया। उनका यह प्रोजेक्ट आज खासा कामयाब है। अपने को दिव्य किस रूप में देखते हैं, फेसबुक के संस्थापक या समजीरो के सीईओ, पूछे जाने पर उनका सीधा जवाब होता है, मैं बस एक कामयाब उद्यमी के रूप में पहचाना जानना चाहता हूं। जिसने अपने और समाज के लिए कुछ किया हो। फेसबुक के अनुभव से मिली सीख के बारे में पूछने पर दिव्य मजाक करते हैं,"मुझे हाईस्कूल में ही वेब प्रोग्रामिंग सीख लेनी चाहिए थी।"

ऎसा नहीं कि दिव्य के फेसबुक की खोज करने की बात लोगों को मालूम नहीं है। हाल ही में जुकरबर्ग पर बनी फिल्म"द सोशल नेटवर्क"में उनका किरदार भी रखा गया था। आखिर उनके जिक्र के बिना फेसबुक की कहानी भला पूरी कैसे हो सकती थी। इस बारे में पूछने पर दिव्य बताते हैं,"पहले मुझे डर था कि फिल्म में मुझे खलनायक के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है, लेकिन फिल्म देखने के बाद मेरा डर दूर हो गया।"दिव्य अपनी जिंदगी के फंडे के बारे में पूछने पर बताते हैं,"आपको अपनी नाकामयाबियों से सीखना आना चाहिए। एक बार नाकामी से सीख लेने के बाद आपको तत्काल अगला प्रयास शुरू कर देना चाहिए।
वेद क्या हैं ?

''वेदो अखिलो धर्म मूलम '' ... ''वेद धर्म का मूल हैं'' ... राजऋषि मनु के अनुसार 'वेद' शब्द 'विद' मूल शब्द से बना है... 'विद' का अर्थ है... "ज्ञान"...

वेद 1.97 बिल्लियन वर्ष पुराने हैं | वेदों के अनुसार यह वर्तमान सृष्टि 1 अरब, 96 करोड़, 8 लाख और लगभग 53000 वर्ष पुरानी है और इतने ही पुराने हैं "वेद" | जैसा की ऋग्वेद मन्त्र 10/191/3 में कहा गया है की यह सृष्टि , इससे पिछली सृष्टि के

समान है और सृष्टि के चलने का क्रम शाश्वत है , इसलिए "वेद" भी शाश्वत हैं |

'' वेदों का वास्तव में सृजन या विनाश नहीं होता , वे तो केवल प्रकाशित और अप्रकाशित होते हैं , परन्तु , ईश्वर में सदैव रहते हैं''-आदि जगद्गुरु शंकराचार्य...

''वेद अपौरुषेय हैं''- कुमारीलभट्ट...

वेद वास्तव में पुस्तकें नही हैं... बल्कि यह वो ज्ञान है जो ऋषियों के ह्रदय में प्रकाशित हुआ | ईश्वर वेदों के ज्ञान को सृष्टि के प्रारम्भ के समय चार ऋषियों को देते हैं... जो जैविक सृष्टि के द्वारा पैदा नही होते हैं | इन ऋषियों के नाम हैं... अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा |

1.ऋषि अग्नि ने "ऋग्वेद" को प्राप्त किया
2.ऋषि वायु ने "यजुर्वेद" को प्राप्त किया
3.ऋषि आदित्य ने "सामवेद" को प्राप्त किया और
4.ऋषि अंगीरा ने "अथर्ववेद" को प्राप्त किया...

इसके बाद इन चार ऋषियों ने दुसरे लोगों को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान किया...

ऋग्वेद दिव्य मन्त्रों की संहिता है | इसमें १०१७ (1017) ऋचाएं अथवा सूक्त हैं जो कि १०६०० (10600) छंदों में पंक्तिबद्ध हैं | ये आठ "अष्टको" में विभाजित हैं एवं प्रत्येक अष्टक के क्रमानुसार आठ अध्याय एवं उप- अध्याय हैं | ऋग्वेद का ज्ञान मूलतः अत्रि, कन्व, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदाग्नि, गौतम एवं भरद्वाज ऋषियों को प्राप्त हुआ | ऋग वेद की ऋचाएं एक सर्वशक्तिमान पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की उपासना अलग अलग विशेषणों से करती हैं...

सामवेद संगीतमय ऋचाओं का संग्रह हैं | विश्व का समस्त संगीत सामवेद की ऋचाओं से ही उत्पन्न हुआ है | ऋग्वेद के मूल तत्व का सामवेद संगीतात्मक सार है, प्रतिपादन हैं...

यजुर्वेद मानव सभ्यता के लिए नीयत कर्म एवं अनुष्ठानों का दैवी प्रतिपादन करते हैं | यजुर वेद का ज्ञान मद्यान्दीन, कान्व, तैत्तरीय, कथक, मैत्रायणी एवं कपिस्थ्ला ऋषियों को प्राप्त हुआ...

अथर्ववेद ऋग्वेद में निहित ज्ञान का व्यावहारिक कार्यान्वन प्रदान करता है ताकि मानव जाति उस परम ज्ञान से पूर्णतयः लाभान्वित हो सके | लोकप्रिय मत के विपरीत अथर्ववेद जादू और आकर्षण मन्त्रों एवं विद्या की पुस्तक नहीं है...

वेद- संरचना...

प्रत्येक वेद चार भागों में विभाजित हैं, क्रमशः : संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् | ऋचाओं एवं मन्त्रों के संग्रहण से संहिता, नीयत कर्मों और कर्तव्यों से ब्राह्मण , दार्शनिक पहलु से आरण्यक एवं ज्ञातव्य पक्ष से उपनिषदों का निर्माण हुआ है | आरण्यक समस्त योग का आधार हैं | उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है एवं ये वैदिक शिक्षाओं का सार हैं...

वेद: समस्त ज्ञान के आधार हैं...

अनंता वै वेदा: ... वेद अनंत हैं...

अण्डे का सच और रहस्य जिसे पढ़ कर सारा भारत देश अंडा खाना छोड देगा

आजकल मुझे यह देख कर अत्यंत खेद और आश्चर्य होता है की अंडा शाकाहार का पर्याय बन चुका है...खैर मै ज्यादा भूमिका और प्रकथन में न जाता हुआ सीधे तथ्य पर आ रहा हूँ. मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है, उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार...चार दिन तक होता है. ज
िसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है...उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ,
चूल्हा रसोईघर आदि से दूर रखा जाता है...यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है कई परिवारों में...!
शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है. इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहूँगा...मासिक स्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन(estrogen) की अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शारीर से यह निकलता रहता है...इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये...एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये...वह पौधा सूख जाएगा...!

अब आते है मुर्गी के अण्डे की ओर...
१) पक्षियों (मुर्गियों) में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है. अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में ना हो कर ठोस(अण्डे) के रूप में बाहर आता है.
२) सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है और मादा हार्मोन (estrogen) से भरपूर है और बहुत ही हानिकारक है.
३) ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन(oxytocin) का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे के मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित(unfertilized)अण्डे देती है.
४) इन भ्रूणों (अन्डो) को खाने से पुरुषों में (estrogen) हार्मोन के बढ़ने के कारण कई रोग उत्पन्न हो रहे है. जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ
की कमी (oligozoospermia,azoospermia), नपुंसकता और
स्तनों का उगना(gynacomastia), हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन आदि....वहीँ स्त्रियों में अनियमित मासिक, बन्ध्यत्व(PCO poly cystic oveary), गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो रहे है.
५) अन्डो में पोषक पदार्थो के लाभ से
ज्यादा इन रोगों से हांनी का पलड़ा ही भारी है.
६) अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग ७०% कोलेस्ट्रोल है जो की ह्रदय रोग (heart attack) का मुख्य कारण है.
7) पक्षियों की माहवारी (अन्डो) को खाना, धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध,
अप्राकृतिक और अपवित्र और चंडाल कर्म है.
8) अन्डो में से चूजा ( मुर्गी-मुर्गा ) बहार आता है, एक निश्चित समय पर
.और चूजो में रक्त-मांस-हड्डी-मज्जा-वीर्य-रस आदि होता है. चाहे उसे कही से भी काँटों. अन्डो में से घ्रणित द्रव्य निकलता है,जब
उसे तोड़ते हो, दोनों परिस्तिथियों में वह रक्त (जीवन) का प्रतिक है-मतलब
अंडा खाना मासांहार ही है...!
इसकी जगह पर आप दूध पीजिए जो के पोषक, पवित्र और शास्त्र सम्मत भी है

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

आखिर कब तक शर्म करते रहेंगे अपने भारतीय होने पर........??

आखिर कब तक शर्म करते रहेंगे अपने भारतीय होने पर........??
पूरे विश्व को अँधेरी गुफ़ा से निकालकर सूर्य की रश्मि में भिंगोने वाले,जो चारों पैरों पर घुड़कना सीख रहे थे उन्हें उँगली पकड़कर चलना सीखाने वाले हम भारतीयों को आज अपने भारतीय होने पर शर्म महसूस होता है ,हीन भावना से ग्रसित होकर जीवन जी रहे हैं हमसब.... तभी तो हम भारतीय अपना तर्कसंगत नया साल को छोड़कर अंग्रेजों का नया साल मनाते हैं जिसका कोई आधार ही नहीं है.,हम पूजा-पाठ,यज्य-हवन,दान-पुण्य कर घी के दिए को जलाकर अपना जन्म-दिवस बनाने की परम्परा को छोड़कर अंडे से बने गंदे केक पर थूककर बेहुदा और गंदी परम्परा को बडे़ गर्व के साथ निभा रहे हैं,अपनी स्वास्थ्यकर चीजों को छोड़कर रोगों को बुलावा देने वाले चीजों को खाना अपना शान समझते हैं,अपनी मातृभाषा में बात करने में हम अपनेआप को अपमानित महसूस करते हैं और उस भाषा को बोलने में गर्व महसूस करते हैं जिसके विद्वानों को खुद उस भाषा के बारे में पता नहीं, खुद उसे अपनी सभ्यता-संस्कृति के इतिहास की कोई जानकारी नहीं और जो हमारे यहाँ के किसी बच्चे से भी कम बुद्धि रखता है.......... अगर विश्वास नहीं होता तो किसी ईसाई से पूछ्कर देखिए तो कि उनके अराधना-स्थल का नाम चर्च क्यों पडा़,क्रिस्तमस का अर्थ क्या है....?और क्रिसमस को एक्समस(x-mas) क्यों कहा जाता है...? हमलोगों के तो संस्कृत या हिन्दी के प्रत्येक शब्द का अर्थ है क्योंकि सब संस्कृत के मूल धातु से उत्पन्न हुआ है...क्रिसमस को अगर ईसा के जन्मदिवस के रुप में मनाया जाता है तो फ़िर क्रिसमस में तो जन्मदिन जैसा कोई अर्थ नहीं है और उनके जन्म को लेकर तो ईसाई विद्वानों में ही मतभेद है. कोई उनके जन्म को ४ ईसा पूर्व बताते हैं तो कोई कुछ...और ठीक है अगर मान भी लिए कि २५ दिसम्बर को ही ईसा का जन्म हुआ था तो अपना नया साल एक सप्ताह बाद क्यों....?आपको तो नया साल का शुरुआत उसी दिन से करना चाहिए था..!कोई जवाब नहीं है उनके पास लेकिन हमारे पास है...और जिन शब्दों का अर्थ उन्हें नहीं मालूम वो हमें है वो इसलिए कि नहरें नदी के जितना विशाल नहीं हो सकतीं...एक और प्रश्न कि वो लोग अपना अगला दिन और तिथि रात के १२ बजे उठकर क्यों बदलते हैं जबकि दिन तो सूर्योदय के बाद होता है..
तनिक विचार करिए कि अँग्रेजी में सेप्ट(sept) 7 के लिए प्रयुक्त होता है oct आठ के लिए deci दस के लिए तो फ़िर september,october,november & December क्रमशः नौवाँ,दसवाँ,ग्यारहवाँ और बारहवाँ महीना कैसे हो गया.....??सितम्बर को तो सातवाँ महीना होना चाहिए फ़िर वो नौंवा महीना क्यों है,दिसम्बर को तो दसवाँ महीना होना चाहिए फ़िर वो बरहवाँ महीना क्यों है और कैसे.....?कभी सोचा आपने...!!
इसका कारण ये है कि १७५२ ई० तक इंग्लैण्ड में मार्च ही पहला महीना हुआ करता था और उसी गणित से ७वाँ महीना सितम्बर और दसवाँ महीना दिसम्बर था लेकिन १७५२ के बाद जब शुरुआती महीना जनवरी को बनाया गया तब से सारी व्यवस्था बिगडी़..तो अब समझे कि क्रिसमस को x-mas क्यों कहते हैं.....! "x " जो रोमन लिपि में दस का संकेत है और "mas" यनि मास,यनि दसवाँ महीना..उस समय दिसम्बर दसवाँ महीना था जिस कारण इसका x-mas नाम पडा़..और मार्च पहला महीना इसलिए होता था क्योंकि भारतीय लोग इसी महीने में अपना नववर्ष मनाते थे और अभी भी मनाते हैं..तो सोचिए कि हमलोग बसन्त जैसे खुशहाल समय जिसमें पेड़-पौधे,फ़ूल-पत्ते सारी प्रकृति एक नए रंग में रंग जाती है और अपना नववर्ष मनाती है उसे छोड़कर जनवरी जैसे ठंडे,दुखदायी और पतझड़ के मौसम में अपना नया साल मनाकर हमलोग कितने बेवकूफ़ बनते हैं.........सितम्बर यानि सप्त अम्बर यानि आकाश का सातवाँ भाग...भारतीयों ने आकाश को बारह भागों में बाँट रखा था जिसका सतवाँ,अठवाँ,नौंवा और दसवाँ भाग के आधार पर ये चारों नाम हैं...तो अब समझे कि इन चार महीनों का नाम सेप्टेम्बर,अक्टूबर ,नवम्बर और डेसेम्बर क्यों है...!
संस्कृत में ७ को सप्त कहा जाता है तो अँग्रेजी में सेप्ट,अष्ट को ऑक्ट,दस को डेसी...अँग्रेज लोग "त" का उच्चारण "ट" और "द" का "ड" करते हैं इसलिए सप्त सेप्ट और दस डेश बन गया है...तो इतनी समानता क्यों है...??आप समझ चुके होंगे कि मैं किस ओर इशारा कर रहा हूँ.....! अगर अभी भी अस्पष्ट है तो चिंता की बात नहीं आगे स्पष्ट हो जाएगा.....
चलिए पहले हम बात कर रहे थे अपने हीन भावना की तो इसी की बात कर लेते हैं ...हमारे देशवासियों की अगर ऐसी मानसिकता बन गयी है तो इसमें उनका भी कोई दोष नहीं है...भारतीयों को रुग्ण मानसिकता वाले और हीन भावना से भरने का चाल तो १८३१ से ही चला जा रहा है जबसे यहाँ अँग्रेजी शिक्षा लागू हुई....अँग्रेजी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ही यही था कि भारतीयों को पराधीन मानसिकता वाला बना दिया जाय ताकि वो हमेशा अंग्रेजों के तलवे चाटते रहे..यहाँ के लोगों का यहाँ के नारियों का नैतिक पतन हो जाय,भारतीय कभी अपने पूर्वजों पर गर्व ना कर सके,वो बस यही समझते रहे कि अँग्रेजो के आने से पहले वो बिल्कुल असभ्य था उसके पूर्वज अंधविश्वासी और रुढी़वादी थे,अगर अँग्रेज ना आए होते तो हम कभी तरक्की नहीं कर पाते..इसी तर्ज पर उन्होंने शिक्षा-व्यवस्था लागू की थी और सफ़ल हो भी गए... और ये हामारा दुर्भाग्य ही है आजादी के बाद भी हमारे देश का नेतृत्व किसी योग्य भारतीय के हाथ में जाने के बजाय नेहरु जैसे विकृत,बिल्कुल दुर्बल और रोगी मानसिकता वाले व्यक्ति के हाथ में चला गया जो सिर्फ़ नाम से भारतीय था पर मन और कर्म से तो वो बिल्कुल अँग्रेज ही था...बल्कि उनसे चार कदम आगे ही था..ऐसा व्यक्ति था वो जो सुभाष चन्द्र बोष,भगत सिंह, वीर सावरकर और बाल गंगाधर तिलक जैसे हमारे देशभक्तों से नफ़रत करता था क्योंकि उसकी नजर में वो लोग मजहबी थे.उसकी नजर में राष्ट्रवादी होना मजहबी होना था.वो ये समझता था कि भारतीय बहुत खुशनसीब हैं जो उनके उपर गोरे शासन कर रहे हैं, क्योंकि इससे असभ्य भारतीय सभ्य बनेंगे.. उसकी ऐसी मानसिकता का कारण ये था कि उसने भारतीय शिक्षा कभी ली ही नहीं,अपनी पूरी शिक्षा उन्होंने विदेशों से प्राप्त की थी जिसका ये परिणाम निकला था....चरित्र ऐसा कि बुढा़री में भी इश्कबाजी करना नहीं छोडे़ जब उनकी कमर झुक गयी थी और छडी़ के सहारे चलते थे...भारत के अंतिम वायसराय की पत्नी एडविन माउण्टबेटेन के साथ उनकी रंगरेलियाँ जग-जाहिर हैं जिसका विस्तृत वर्णन एडविन की बेटी पामेला ने अपनी पुस्तक "India remembered" में किया है,,पामेला के पास नेहरु द्वारा उसकी माँ को बक्सा भर-भरकर लिखे गए लव-लेटर्स भी हैं..वो तो भला हो हमारे लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल का जिसके कारण आज कश्मीर भारत में है नहीं तो पंडित जी ने तो इसे अपने प्यार पर कुर्बान कर ही दिया था..और उस लौह पुरुष को भी महात्मा कहे जाने वाले गांधी ने इतना अपमानित किया था कि बेचारे के आँखों से आँसू छलक पडे़ थे..सच्ची बात तो ये थी कि कश्मीर भारत में रहे या पाकिस्तान में इससे इन दोनों(नेहरु,गांधी) को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था...लोग समझते हैं कि अँग्रेजों ने १९४७ में भारत को आजाद कर दिया था पर सच्चाई ये नहीं है..सच्चाई ये है कि उसने नेहरु के रुप में अपना नुमाइंदा यहाँ छोड़ दिया था..वो जानता था कि उसका नुमाइंदा उससे भी ज्यादा निपुणता से भारत देश को बर्बाद करने का काम करेगा....और सच में उसका नुमाइंदा उसकी आशा से ज्यादा ही खरा उतरा.....नेहरु(सीधे-सीधी कहूँ तो पूरे काँग्रेसियों का) का ही ये प्रभाव है कि हम आज तक मानसिक रुप से आजाद नहीं हो पाए अँग्रेजों से......हमारी स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि अमृत भी पीने मिल जाय तो पहले अँग्रेजों से पूछ्ने जाएँगे कि इसे पीयें कि नहीं,,अगर कोई विषैला पदार्थ भी मिल गया तो पहले हम अँग्रेजों से ही पूछेंगे कि इसे त्यागना चाहिए या पी लेना चाहिए....और जिस अँग्रेजों ने आजतक हमलोगों से नफ़रत की कभी हमलोगों की तरक्की सह नहीं पाए,क्या लगता है कि वो हमें हमारे भले की सलाह देंगे....???पूरे विश्व को सभ्यता हमने सिखाई और आज हम उनसे सभ्यता सीख रहे हैं.....ध्यान-साधना,योग,आयुर्व
ेद ये सारी अनमोल चीजें हमारी विरासत थी लेकिन अँग्रेजों ने हमलोगों के मन में बैठा दिया कि ये सब फ़ालतू चीजें हैं और हमलोगों ने मान भी लिया पर आज जब उनको जरुरत पड़ रही है इनसब चीजों की तो फ़िर से हमलोगों की शरण में दौडे़-भागे आ रहे है और अब हमारा योग योगा बनकर हमारे पास आया तब जाकर हमें एह्सास हो रहा है कि जिसे कँचे समझकर खेल रहे थे हम वो हीरा था...पर अब देर हो चुकी है.....जिस आयुर्वेद का ज्यान सदियों पहले से हमारे हरेक घर के एक-एक बच्चे तक को है कि हल्दी का क्या उपयोग है और नीम का क्या उपयोग है....उस आयुर्वेद के ज्यान को विदेशी वाले अपने नाम से पेटेंट करा रहे हैं जिसके बाद उसका व्यापारिक उपयोग हम नहीं कर पाएँगे.... इस आयुर्वेद का ज्यान इस तरह रच बस गया है हमलोगों के खून में कि चाहकर भी हम इसे भुला नही सकते...आज भले ही बहुत कम ज्यान है हमें आयुर्वेद का पर पहले घर की हरेक औरतों को इसका पर्याप्त ज्यान होता था तभी तो आज भी दादी माँ के नुस्खे या नानी माँ के नुस्खे पुस्तक बनकर छप रहे हैं... उस आयुर्वेद की छाया प्रति तैयार करके अरबी वाले यूनानी चिकित्सा का नाम देकर प्रचारित कर रहे हैं....
आज अगर विदेशी वाले हमारे ज्यान को अपने नाम से पेटेंट करा रहे हैं तो हमारी नपुंसकता के कारण ही ना...?वो तो योग के ज्याता नहीं रहे होंगे विदेश में और जब तक होते तब तक स्वामी रामदेव
जी आ गए नहीं तो ये भी किसी विदेशी के नाम से पेटेंट हो चुका होता...हमारी एक और महान विरासत है संगीत की जो मा सरस्वती की देन है किसी सधारण मानवों की नहीं...!!फ़िर इसे हम तुच्छ समझकर इसका अपमान कर रहे हैं....याद है आज से साल भर पहले हमारे संगीत-निर्देशक ए.आर.रहमान को संगीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार दिया गया था...और गर्व से सीना चौडा़ हो गया था हम भारतीयों का...जबकि मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे अपनों ने मुझे जख्म दिया और अँग्रेज उसमें नमक छिड़क रहे हैं और मेरे अपने उसे देखकर खुश हो रहे हैं......किस तरह भींगाकर जूता मारा था अँग्रेजों ने हम भारतीयों के सर पर और हम गुलाम भारतीय उसमें भी खुश हो रहे थे कि मालिक ने हमें पुरस्कार तो दिया.....भले ही वो जूते का हार ही क्यों ना हो....??अरे शर्म से डूब जाना चाहिए हम भारतीयों को अगर रत्ती मात्र भी शर्म बची है हमलोगों में तो......?अगर थोडा़ सा भी स्वाभिमान बचा है हमलोगों में तो...?बेशक रहमान की जगह कोई देशभक्त होता तो ऐसे ऑस्कर को लात मार कर चला आता..क्योंकि उसे पुरस्कार अच्छे संगीत के नहीं दिए गए थे बल्कि उसने पश्चिमी संगीत को मिलाया था भारतीय संगीत में इसलिए मिले उसे वो पुरस्कार...यनि कि भारतीय संगीत कितना भी मधुर क्यों ना हो ऑस्कर लेना है तो पश्चिमी संगीत को अपनाना होगा...सीधा सा मतलब ये है कि हमें कौन सा संगीत पसंद करना है और कौन सा नहीं ये हमें अब वो बताएँगे...इससे बडा़ और गुलामी का सबूत क्या हो सकता है कि हम अपनी इच्छा से कुछ पसन्द भी नहीं कर सकते...कुछ पसंद करने के लिए भी विदेशियों की मुहर लगवानी पड़ती है उसपर हमें....भाई पसंद तो अपनी-अपनी होती है फ़िर इसे कोई अन्य निर्धारित कैसे कर सकता है..उसपर भी उसकी सभ्यताएँ अलग हैं और हमारी अलग,,उसके पसंद अलग हैं और हमारे अलग....अगर कोई भारतीय संगीतग्य हमारी पसंद निर्धारित करे तो कोई बात नहीं पर जिसे संगीत का "क ख ग" भी नहीं पता वो हमें क्या सिखाएँगे...?जहाँ संगीत का मतलब सिर्फ़ गला फ़ाड़कर चिल्ला देना भर होता है वो हमें सिखायेंगे...??ज्यादा पुरानी बात भी नहीं है ये........हरिदास जी और उसके शिष्य तानसेन(जो अकबर के दरबारी संगीतग्य थे) के समय की बात है जब राज्य के किसी भाग में सूखा और अकाल की स्थिति पैदा हो जाती थी तो तानसेन को वहाँ भेजा जाता था वर्षा कराने के लिए..तानसेन में इतनी क्षमता थी कि मल्हार गाके वर्षा करा दे,दीपक राग गाके दीपक जला दे और शीतराग से शीतलता पैदा कर दे तो प्राचीन काल में अगर संगीत से पत्थर मोम बन जाता था जंगल के जानवर खींचे चले आते थे कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये बात कोई भी अनुभव कर सकता है कि किस तरह दिनों-दिन संगीत-कला विलुप्त होती जा रही है.....और संगीत कला का गुण तो हम भारतीयों के खून में है..देख लिजिए किस तरह यहाँ हरेक बच्चा बोलना सीखता नहीं है कि गायक बन जाता है.....किशोर कुमार,उषा मंगेश्कर,कुमार सानू जैसे अनगिनत उदाहरण है जो बिना किसी से संगीत की शिक्षा लिए ही बॉलीवुड में आए थे.....एक और उदाहरण है जब तानसेन की बेटी ने रात भर में ही "शीत राग" सीख लिया था...चूँकि दीपक राग गाते समय शरीर में इतनी उष्मा पैदा हो जाती है कि अगर अन्य कोई शीत राग ना गाए तो दीपक राग गाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी....और तानसेन के प्राण लेने के उद्देश्य से ही एक चाल चलकर उसे दीपक राग गाने के लिए बाध्य किया था उससे ईर्ष्या करने वाले दरबारियों ने...और तानसेन भी अपनी मृत्यु निश्चित मान बैठे थे क्योंकि उनके अलावे कोई और इसका ज्याता(जानकार) था नहीं और रात भर में सीखना संभव भी ना था किसी के लिए पर वो भूल गए थे कि उनकी बेटी में भी उन्हीं का खून था और जब पिता के प्राण पर बन आए तो बेटी असंभव को भी संभव करने की क्षमता रखती है.....--तान सेन के ऐसे सैकडो कहानियाँ हैं पर ये छोटी सी कहानी मैने आपलोगों को अपने भारत के महान संगीत विरासत की झलक दिखाने के लिए लिखी...अब सोचिए कि ऐसे में अगर विदेशी हमें संगीत की समझ कराएँ तो ये तो ऐसा ही है जैसे पोता अपने दादा जी को धोती पहनना सिखाए,राक्षस साधु-महात्माओं को धर्म का मर्म समझाए और शेर किसी हिरण को अपने पंजे में दबोचकर अहिंसा की शिक्षा दे......नहीं..??हमलोगों के यहाँ सात सुर से संगीत बनता है इसलिए सात तारों से बना हुआ सितार बजाते हैं हमलोग,लेकिन अँग्रेजों को क्या समझ में आ गया जो छह तार वाला वाद्य-यंत्र बना लिया और सितार की तर्ज पर उसका नामकरण गिटार कर दिया.....????
इतना कहने के बाद भी हमारे भारतीय नहीं मानेंगे मेरी बात ,,पर जब कोई अँग्रेज कहेगा कि उसने गायों को भारतीय संगीत सुनाया तो ज्यादा दूध निकाल लिया या जब ये शोध सामने आएगा कि भारतीय संगीत का असर फ़सलों पर पड़ता है और वे जल्दी-जल्दी बढ़ने लगते हैं तब हम विश्वास करेंगे......क्यों भाई..?ये सब शोध अँग्रेज को भले आश्चर्यचकित कर दे पर अगर ये शोध किसी भारतीय को आश्चर्यचकित करती है तो ये दुःख की बात नहीं है...??
हमारे देश वासियों को लगता है हमलोग कितने पिछडे़ हुए हैं जो हमारे यहाँ छोटे-छोटे घर हैं और दूसरी ओर अँग्रेज तकनीकी विद्या के कितने ज्यानी हैं,वो खुशनसीब हैं जो उनके यहाँ इतनी ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ(buildings) हैं और इतने बडे़-बडे़ पुल हैं........इसपर मैं अपने देश वासियों से यही कहूँगा कि ऊँचे घर बनाना मजबूरी और जरुरत है उनकी,विशेषता नहीं,, हमलोग बहुत भाग्यशाली हैं जो अपनी धरती माँ की गोद मे रहते हैं विदेशियों की तरह माँ के सर पर चढ़ कर नही बैठते....हमलोगों को घर के छत, आँगन और द्वार का सुख प्राप्त होता है..जिसमें गर्मी में सुबह-शाम ठंडी-ठंडी हवा जो हमें प्रकृति ने उपहार-स्वरुप प्रदान किए हैं उसका आनंद लेते हैं और ठंड में तो दिन-दिन भर छत या आँगन में बैठकर सूर्य देव की आशीर्वाद रुपी किरणों को अपने शरीर में समाते हैं,विदिशियों की तरह धूप सेंकने के लिए नंगा होकर समुन्द्र के किनारे रेत पर लेटते नहीं हैं....
रही बात क्षमता की तो जरुरत पड़ने पर हमने समुन्द्र पर भी पत्थरों का पुल बना दिया था और रावण तो पृथ्वी से लेकर स्वर्ग तक सीढी़ बनाने की तैयारी कर रहा था.....तो अगर वो चाहता तो गगन्चुम्बी इमारतें भी बना सकता था लेकिन अगर नहीं बनाया तो इसलिए कि वो विद्वान था.....
तथ्यपूर्ण बात तो ये है कि हम अपनी धरती माँ के जितने ही करीब रहेंगे रोगों से उतना ही दूर रहेंगे और जितना दूर रहेंगे रोगों के उतना ही करीब जाएँगे...
हमारे मित्रों को इस बात की भी शर्म महसूस होती है कि हमलोग कितने स्वार्थी,बेईमान,झूठे,मक्कार, भ्रष्टाचारी और चोर होते हैं जबकि अँग्रेज लोग कितने ईमानदार होते हैं...हमलोगों के यहाँ कितनी धूल और गंदगी है जबकि उनके यहाँ तो लोग महीने में एक-दो बार ही झाडू़ मारा करते हैं............तो जान लिजिए कि वैज्यानिक शोध ये कहती है कि साफ़-सुथरे पर्यावरण में पलकर बडे़ होने वाले शिशु कमजोर होते हैं,उनके अंदर रोगों से लड़ने की शक्ति नहीं होती है दूसरी तरफ़ दूषित वातावरण में पलकर बढ़ने वाले शिशु रोगों से लड़ने के लिए शक्ति-सम्पन्न होते हैं..इसका अर्थ ये मत लगा लिजिएगा कि मैं गंदगी पसन्द आदमी हूँ,मैं भारत में गंदगी को बढा़वा दे रहा हूँ.......मेरा अर्थ ये है कि सीमा से बाहर शुद्धता भी अच्छी नहीं होती...और जहाँ तक भारत की बात है तो यहाँ हद से ज्यादा गंदगी है जिसे साफ़ करने की अत्यंत आवश्यकता है..रही बात झाड़ू मारने की तो घर गंदा हो या ना हो हमें झाड़ू तो रोज मारना ही चाहिए क्योकि झाड़ू मारकर हम सिर्फ़ धूल-गंदगी को ही बाहर नहीं करते बल्कि अपशकुन को भी झाड़-फ़ुहाड़ कर बाहर कर देते हैं तभी तो हम गरीब होते हुए भी खुश रहते हैं...भारतीय को समृद्धि की सूचि में पाँचवे स्थान पर रखा गया था क्योंकि ये पैसे के मामले में भले कम है लेकिन और लोगों से ज्यादा सुखी हैं......और जहाँ तक हमारे बेईमान बनने का बात है तो वो सब अँग्रेजों और मुसलमानों ने ही सिखाया है हमें नहीं तो उसके आने के पहले हम छल-कपट जानते तक नहीं थे..उन्होंने हमें धर्म-विहिन और चरित्र-विहिन शिक्षा देना शुरु किया ताकि हम हिंदू धर्म से घृणा करने लगे और ईसाई बन जायें....उन्होंने नौकरी-आधारित शिक्षा व्यवस्था लागू कि ताकि बच्चे नौकरी करने की पढा़ई के अलावे और कुछ सोच ही ना पाए.इसका परिणाम तो देख ही रहे हैं कि अभी के बच्चे को अगर चरित्र,धर्म या देशहित के बारे में कुछ कहेंगे तो वो सुनना ही नहीं चाहता है...वो कहता है उसे अभी सिर्फ़ अपने कोर्स की किताब से मतलब रखना है और किसी चीज से कोई मतलब नहीं उसे...अभी की शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नौकरी पाना रह गया है....लोगों को किताबी ज्यान तो बहुत मिल जाता है कि वो डॉक्टर-इंजीनियर,वकील,आई०ए०एस० या नेता बन जाता है पर उसकी नैतिक शिक्षा न्यूनतम स्तर की भी नहीं होती है जिसकारण रोज एक-से-बढ़कर एक अपराध और घोटाले करते रहते हैं ये लोग...अभी की शिक्षा पाकर बच्चे नौकरी पा लेते हैं लेकिन उनका मानसिक और बौद्धिक विकास नहीं हो पाता है,इस मामले में वो पिछडे़ ही रह जाते हैं जबकि हमारी सभ्यता मे ऐसी शिक्षा दी जाती थी जिससे उस व्यक्ति के पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता था..उसकी बुद्धि का विकास होता था,उसकी सोचने-समझने की शक्ति बढ़ती थी.....
आज ये अँग्रेज जो पूरी दुनिया में ढोल पीट रहे हैं कि ईसाईयत के कारण ही वो सभ्य और विकसित हुए और उनके यहाँ इतनी वैज्यानिक प्रगति हुई तो क्या इस बात का उत्तर है उनके पास कि कट्टर और रुढी़वादी ईसाई धर्म जो तलवार के बल पर २५-५० की संख्या से शुरु होकर पूरा विश्व में फ़ैलाया गया,,जो ये कहता हो कि सिर्फ़ बाईबल पर आँख बंदकर भरोसा करने वाले लोग ही स्वर्ग जाएँगे बाँकि सब नर्क जाएँगे,,जिस धर्म में बाईबल के विरुद्ध बोलने की हिम्मत बडा़ से बडा़ व्यक्ति भी नहीं कर सकता वो इतना विकासशील कैसे बन गया..??चार सौ साल पहले जब गैलीलियों ने यूरोप की जनता को इस सच्चाई से अवगत कराना चाहा कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तो ईसाई
धर्म-गुरुओं ने उसे खम्बे से बाँधकर जीवित जलाए जाने का दण्ड दे दिया .....वो तो बेचारा क्षमा मांगकर बाल-बाल बचा...एक और प्रसिद्ध पोप,उनका नाम मुझे अभी याद नहीं,वे भी मानते थे कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है लेकिन जीवन भर बेचारे कभी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए..उनके मरने के बाद उनकी डायरी से ये बात पता चली...क्या ऐसा धर्म वैज्यानिक उन्नति में कभी सहायक हो सकता है.....?ये तो सहायक की बजाय बाधक ही बन सकता है..हिंदू जैसे खुले धर्म को जिसे गरियाने की पूरी स्वतंत्रता मिली हुई है सबको जिसमें कोई मूर्त्ति-पूजा, करता है कोई ध्यान-साधना कोई तंत्र-साधना कोई मंत्र-साधना....ऐसे अनगिनत तरीके हैं इस धर्म में,जिस धर्म में कोई बंधन नहीं,,जिसमें नित नए खोज शामिल किए जा सकते है और समय तथा परिस्थिति के अनुसार बदलाव करने की पूरी स्वतंत्रता है,जिसने सिर्फ़ पूजा-पाठ ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला सिखाई,वसुधैव कुटुम्बकम का नारा दिया,पूरे विश्व को अपना भाई माना,जिसने अंक शास्त्र,ज्योतिष-शास्त्र,आयुर्वेद-शास्त्र,संगीत-कला,भवन-निर्म
ाण कला,काम-कला आदि जैसे अनगिनत कलाएँ तुमलोगों(ईसाईयों और मुसलमानों) को दी और तुमलोग कृतघ्न, जो नित्य-कर्म के बाद अपने गुदा को पानी से धोना भी नहीं जानते,,हमें ही गरियाकर चले गए,,अगर ईसाई धर्म के कारण ही तुमने तरक्की की तो वो तो १८०० साल पहले कर लेना चाहिए था पर तुमने तो २००-३०० साल पहले जब सबको लूटना शुरु किए और यहाँ(भारत) के ज्यान को सीख-सीखकर यहाँ के धन-दौलत को हड़पना शुरु किए तबसे तुमने तरक्की की...ऐसा क्यूँ..?.ये दुनिया करोडो़ वर्ष पुरानी है लेकिन तुमलोगों को ईसा और मुहम्मद के पहले का इतिहास पता ही नहीं......कहते हो बडे़-बडे़ विशाल भवन बना दिए तुमने.....अरे जाओ जब आज तक पिछवाडा़ धोना सीख ही नहीं पाए,,खाना बनाना सीख ही पाए जो कि अभी तक उबालकर नमक डालकर खाते हो,तो बडे़-बडे़ भवन क्या बनाओगे तुम..एक भी ग्रंथ हैं तुम्हारे पास भवन-निर्माण के...? जो भी छोटे-मोटे होंगे वो हमारे ही नकल किए हुए होंगे........,,प्रोफ़ेसर ओक ने तो सिद्ध कर दिया है कि भारत में जितने भी प्राचीन भवन हैं वो हिन्दू भवन या मंदिर हैं जिसे मुस्लिम शासकों ने हड़प कर अपना नाम दे दिया.....और विश्व में भी जो बडे़-बडे़ भवन हैं उसमें हिंदू शैली की ही प्रधानता है... ये भी हँसी की ही बात है कि मुगल शासक महल नहीं सिर्फ़ मकबरे और मस्जिद ही बनवाया करते थे भारत में...जो हमेशा गद्दी के लिए अपने बाप-भाईयों से लड़ता-झगड़ता रहता था,अपना जीवन युद्ध लड़ने में बिता दिया करते थे उसके मन में अपने बाप या पत्नी के लिए विशाल भवन बनाने का विचार आ जाया करता था...!!इतना प्यार करता था अपनी पत्नी से जिसको बच्चा पैदा करवाते करवाते मार डाला उसने...!!मुमताज की मौत बच्चा पैदा करने के दौरान ही हुई थी और उसके पहले वो १४ बच्चे को जन्म दे चुकी थी......जो भारत को बर्बाद करने के लिए आया था,यहाँ के नागरिकों को लूटकर,लाखों-लाख हिंदुओं को काटकर और यहाँ के मंदिर और सांस्कृतिक विरासत को तहस-नहस करके अपार खुशी का अनुभव करता था वो यहाँ कोई सृजनात्मक कार्य करे ये तो मेरे गले से नहीं उतर सकता....जिसके पास अपना कोई स्थापत्य कला का ग्रंथ नहीं है जो भारत की स्थापत्य कला को देखकर ये कहने को मजबूर हो गया था कि भारत इस दुनिया का आश्चर्य है,इसके जैसा दूसरा देश पूरी दुनिया में कहीं नहीं हो सकता है वो लोग अगर ताजमहल बनाने का दावा करता है तो ये ऐसा ही है जैसे ३ साल के बच्चे द्वारा दशवीं का प्रश्न हल करना...दुःख तो ये है कि देश आजाद होने के बाद भी मुसलमानों को खुश रखने के लिए इतिहास में कोई सुधार नहीं किए हमारे मुसलमान और ईसाई भाईयों के मूत्र-पान करने वाले हमारे राजनीतिक नेताओं ने......आज जब ये सिद्ध हो चुका है कि ताजमहल शाजहाँ ने नहीं बनवाया बल्कि उससे सौ-दो सौ साल पहले का बना हुआ है तो ऐसे में अगर सरकार सच्चाई लाने की हिम्मत करती तो क्या हम भारतीय गर्व का अनुभव नहीं करते...?क्या हमारी हीन भावना दूर होने में मदद नहीं मिलती...?ताजमहल सात आश्चर्यों में से एक है ये सब जानते हैं पर सात आश्चर्यों में ये क्यों शामिल है ये कितने लोग जानते हैं...?इसके शामिल होने का कारण है इसकी उत्कृष्ट स्थापत्य कला...इसकी अद्भुत कारीगरी को अब तक आधुनिक इंजीनियर समझने की कोशिश कर रहे हैं..जिस प्रकार कुतुबमीनार के लौह-स्तम्भ की तकनीक को समझने की कोशिश कर रहे हैं जो कि अब तक समझ नहीं पाए हैं.(इस भुलावे में मत रहिएगा कि कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन एबक ने बनवाया था)मोटा-मोटी तो मैं इतना ही जानता हूँ कि यमुना नदी के किनारे के गीली मुलायम मिट्टी को इतने विशाल भवन के भार को सहन करने लायक बनाना,पूरे में सिर्फ़ पत्थरों का काम करना समान्य सी बात नहीं है...इसको बनाने वाले इंजीनियर के इंजीनिरिंग प्रतिभा को देखकर अभी के इंजीनियर दाँतों तले अपनी उँगली दबा रहे हैं...अगर ये सब बातें जनता के सामने आएगी तभी तो हम अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर पाएँगे....१२०० सालों तक हमें लूटते रहे लूटते रहे लूटते रहे और जब लूट-खसोट कर कंगाल बना दिया तब अब हमें एहसास करा रहे हो कि हम कितने दीन-हीन हैं और उपर से हमें इतिहास भी गलत ही पढा़ रहे हो इस डर से कि कहीं फ़िर से अपने पूर्वजों का गौरव इतिहास पढ़कर हम अपना आत्म-विश्वास ना पा लें.....! अरे अगर हिम्मत है तो एक बार सही इतिहास पढा़कर देखो हमें.....हम स्वभिमानी भारतीय जो सिर्फ़ अपने वचन को टूटने से बचाने के लिए जान तक गँवा देते थे इतने दिनों तक दुश्मनों के अत्याचार सहते रहे तो ऐसे में हमारा आत्म-विश्वास टूटना स्वभाविक ही है...हम भारतीय जो एक-एक पैसे के लिए ,अन्न के एक-एक दाने के लिए इतने दिनों तक तरसते रहे तो आज अगर हीन भावना में डूब गए,लालची बन गए,स्वार्थी बन गए तो ये कोई शर्म की बात नहीं...ऐसी परिस्थिति में तो धर्मराज युधिष्ठिर के भी पग डगमगा जाएँ ...आखिर युधिष्ठिर जी भी तो बुरे समय में धर्म से विचलित हो गए थे जो अपनी पत्नी तक को जुएँ में दाँव पर लगा दिए थे.....!
चलिए इतिहास तो बहुत हो गया अब वर्त्तमान पर आते हैं...--------वर्त्तमान में आपलोग देख ही रहे हैं कि विदेशी हमारे यहाँ से डॉक्टर-इंजीनियर और मैनेजर को ले जा रहे हैं...इसलिए कि उनके पास हम भारतीयों की तुलना में दिमाग बहुत ही कम है...आपलोग भी पेपरों में पढ़ते रहते होंगे कि अमेरिका में कभी अमेरिका में गणित पढा़ने वाले शिक्षकों की कमी हो जाती जिसके लिए वो भारत से शिक्षक की मांग करते हैं तो कभी ओबामा भारतीय बच्चों की प्रतिभा से कर डर कर अमेरिकी बच्चों को सावधान होने की नसीहत देते हैं... पूर्वजों द्वारा लूटा हुआ माल है तो अपनी कम्पनी खडी़ कर लेते हैं लेकिन दिमाग कहाँ से लाएँगे.....उसके लिए उन्हें यहीं आना पड़ता है...हम बेचारे भारतीय गरीब पैसे के लालच में बडे़ गर्व से उनकी मजदूरी करने चले जाते थे पर अब परिस्थिति बदलनी शुरु हो गयी है अब हमारे युवा भी विदेश जाने के बजाय अपने देश की सेवा करना शुरु कर दिए हैं..वो दिन दूर नहीं जब हमारे युवाओं पर टिके विदेशी फ़िर से हमारे गुलाम बनेंगे...[०[फ़िर से इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि पूरे विश्व पर पहले हमारा शासन चलता था जिसका इतिहास मिटा दिया गया है....लेकिन जिस तरह सालों पहले हुई हत्या जिसकी खूनी ने अपने तरफ़ से सारे सबूत मिटा देने की भरसक कोशिश की हो,,उसकी जाँच अगर की जाती है तो कई सुराग मिल ही जाते हैं जिससे गुत्थी सुलझ ही जाती है...बिल्कुल यही कहानी हमारे इतिहास के साथ भी है..... ]०]जिस तरह अब हमारे युवा विदेशों के करोडो़ रुपए की नौकरी को ठुकराकर अपने देश में ही इडली,बडा़ पाव सब्जी बेचकर या चलित शौचालय,रिक्शा आदि का कारोबार कर करोडो़ रुपए सलाना कमा रहे है...ये संकेत है कि अब हमारे युवा अपना खोया आत्म-विश्वास प्राप्त कर रहे हैं और उनमें नेतृत्व क्षमता भी लौट चुकी है तो वो दिन दूर नहीं जब पूरे विश्व का नेतृत्व फ़िर से हम भारतीयों के हाथों में होगा और हम पुनः विश्वगुरु के सिंहासन पर आसीन होंगे.....भारतीय प्रतिभा के धनी होते हैं बस अभी हमें पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं..जितनी सुविधा अँग्रेजों को मिलती है उसका अगर एक चौथाई भी भारतीयों को मिल जाय तो इसके सामने किसी की एक ना चले.....इसका उदाहरण भी है कि कुछ दिन पहले अमेरिका में एक सर्वे में देखने को मिला था जिसमें अमेरिका के नागरिकों को आय के आधार पर बाँटा गया था..उसमें सबसे उपर एक लाख डालर से ज्यादा आय वाले वर्ग में ४६% यहूदी और ४३% हिंदू हैं..(ये यहूदी वही यदु वंश के लोग हैं जो महाभारत के भयानक युद्ध के बाद जब यहाँ की धरती आण्विक विकिरणों से पूरी तरह दूषित हो गयी थी तो यहाँ की धरती को छोड़कर विश्व के अन्य भागों में जाकर बस गए थे) फ़िर ७५,००० से एक लाख की सूची में भी सबसे ज्यादा हिंदू ही थे २२%और नीचे से दो पायदानों ३०,००० से कम आय वालों में ईसाई ४७% और मुस्लिम ३५% थे.इस सूची में हिंदु केवल ९% थे...-ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जब अवसर मिला है तो भारतीयों ने अपने आप को श्रेष्ठ साबित कर दिया है...फ़िर भी भारत में रहने वाले हम भारतीय हीन भावना से उबर नहीं पाते....बहुत लोग बोलते हैं कि विदेशी कितने लम्बे-चौडे़ शरीर वाले होते हैं और हम भारतीय कितने दुबले-पतले छोटे शरीर वाले....!!मै उनसे यही कहूँगा कि भगवान ने विशाल शरीर दानवों को दिया था,,मानवों को तो उसने बुद्धि दी थी और बुद्धि बल शारीरिक बल से श्रेष्ठ होता है ये सभी जानते हैं...दानवों में सिर्फ़ शारीरिक बल था पर ना तो उसके पास चरित्र बल था और ना ही बुद्धि क्योंकि शारीरिक बल चरित्र और बुद्धि का दुश्मन होता है दूसरी तरफ़ मानवों में शारीरिक बल भले बहुत कम था पर इसमें चरित्र बल और बुद्धि बहुत ज्यादा थी देवताओं से भी ज्यादा...ये भी सार्वभौमिक सत्य(Universal truth) है कि जिसका आकार जितना बढ़ता जाता है उसका गुण भी घटता जाता है....इसकी पुष्टि आप अपने आस-पास ही कर लिजिए - -देशी फ़ल और सब्जियाँ भले आकार में छोटी होती हैं पर काफ़ी स्वादिष्ट होते हैं दूसरी तरफ़ विदेशी फ़ल आकार में भले ही बडे़ होते हैं पर स्वाद के मामले में लगभग शून्य ही होते है...देशी गाय या मुर्गे की ही तुलना करके देख लिजिए...भारतीय देशी गाय दूध भले ही कम दे पर उसकी गुणवत्ता के सामने किसी और दूध की तुलना ही नहीं है...आप किसी भी पशु-पक्षी में देख लो कि हमारे देशी कितने गुणी और अंदर से कितने मजबूत होते हैं...उनमें रोगो-वोग भी जल्दी नहीं होते पर विदेशी पशु-पक्षी को देख लो..एक बच्चे की तरह लालन-पालन किया जाता है फ़िर भी क्या हाल है उनका.....!!बर्ड-फ़्लू जैसा भयानक रोग हमारे मुर्गे-मुर्गी में तो नहीं फ़ैला कभी....!!इनसब को देखकर आप आदमियों का भी अंदाजा लगा सकते हो..........
चलिए कुछ और तथ्य भारतीयों की महानता के बारे में ------
*१*. विश्व के १० शीर्ष धनी व्यक्तियों में ४ भारतीय हैं.लक्ष्मी मित्तल जो विश्व में पाँचवे हैं वो इंग्लैण्ड में पहले स्थान पर यनि सबसे ज्यादा धनी व्यक्ति हैं..और जहाँ तक मैं जानता हूँ तो बहुत दिन से वो इस स्थान पर हैं..
*२* विश्व का सबसे महँगा घर मित्तल जी का ही है जो इंगलैण्ड में बना हुआ है जिसकी कीमत ७०करोड़ पॉण्ड है...
*३* Hp (कमप्युटर बनाने वाली कम्पनी) के जेनेरल मैनेजर राजीव गुप्ता हैं जो भारतीय हैं...
*४* पेंटियम चिप जिस पर अभी ९०% कमप्युटर काम करते हैं के निर्माता विनोद दह्म हैं(ये भी भारतीय हैं)
*५* हॉटमेल(hotmail) के संस्थापक(founder)और निर्माता( creator) सबीर भाटिया भारतीय ही हैं...
*६*अमेरिका के ३८% डॉक्टर और १२% वैज्यानिक भारतीय हैं..(आज से ६-७ साल पहले मैंने किसी पत्रिका में ये आँकडा़ ५०% देखा था कि अमेरिका में ५०% डॉक्टर और वैज्यानिक भारतीय मूल के हैं..)
*७*पूरे विश्व में भारतीयों की स्थिति.- IBM में नौकरी करने वालों में २८% "intel"में १७% "NASA"में ३६% और Microsoft में ३४%
*८*"sun Microsystems" के सह-संस्थापक--विनोद खोसला
*९* फ़ॉर्चून मैग्जीन के नए रिपोर्ट के अनुसार अजीज प्रेमजी दुनिया के तीसरे धनी व्यक्ति हैं जो विप्रो के CEO हैं..
*१०*AT & T-Bell जो कि C,C++ जैसे कमप्युटर भाषा के निर्माता हैं के अध्यक्ष --अरुण नेत्रावाली
*११*Microsoft Testing Director of window 2000 ---- - सन्जय तेजव्रिका
*१२*Chief Executive of CitiBank,Mckensey & Stanchart--- Victor Menezes,Rajat Gupta & Rana Talwar..
*१३*आईटी क्षेत्र में तो भारत नम्बर एक है ही पर किसी भी क्षेत्र में आप देख लो १ से १० में होंगे ही..एविएशन क्षेत्र में नौवें पर मध्यम तथा भारी वाहनों में चौथे पर कार में ग्यारहवाँ दोपहिया और तीनपहिया में एशिया में पहले स्थान पर ...
*१४* अमेरिका और जापान के बाद भारत ही ऐसा देश है जिसने खुद से सुपर कमप्युटर का निर्माण किया है.
इस तरह एक-एक कर भारत की वर्त्तमान उपलब्धियों को गिनाना संभव नहीं है चलिए अब कुछ पौराणिक उपलब्धियाँ--
*१५*शतरंज का आविष्कार भारत में ,
*१६*दुनिया को दशमलव पद्धति,अंक पद्धति,आधारीय पद्धति का ज्यान हमने दिया..
*१७*दुनिया को शून्य(आर्यभट्ट) का ज्यान हमने दिया...
*१८*बीजगणित(algebra),त्रिकोणमि
ति जिससे जिसको अँग्रेज ट्रिगोनोमेट्री(trigonometry) कहते हैं,कलन गणित जिसका अँग्रेजी में नामकरण हो गया केलकुलस(calculas)...ये सारी चीजें विश्व को भारतीयों की ही देन हैं....द्विघातीय समीकरण श्रीधराचार्य ने ११वीं सदी में ही दिया था..ग्रीक या रोम वाले सबसे बडी़ संख्या 10*6(ten to the power six) तक का ही उपयोग कर पाए थे और वर्त्तमान में भी10*12 तक का ही जिसे टेरा कहा जाता है जबकि हमलोगों ने 10*53 का उपयोग किया था,इसका भी विशेष नाम है.(पर वो विशेष नाम मुझे नहीं पता इसलिए नहीं लिखे)
*१९*आज जिसे पाइथागोरस सिद्धांत का नाम दिया जाता है या ग्रीक गणितज्यों की देन कहा जाता है वो सारे भारत में बहुत पहले से उपयोग में लाए जा रहे थे....इसमेम कौन सी बडी़ बात है अगर ये कहा जाय कि उनलोगों ने यहाँ से नकल कर अपनी वाहवाही लूट ली...
*२०* पाई का मान सबसे पहले बुद्धायन ने दिया था पाइथागोरस से कई सौ साल पहले..
*२१*अपनी कक्षा में पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने की अवधि हमारे गणितज्य भष्कराचार्य ने हजारों साल पहले ही दे दिया था जो अभी से ज्यादा शुद्ध है........365.258756484 दिन
*२२*विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला में स्थापित हुआ था ७००ईसा पूर्व जिसमें पूरे विश्व के छात्र पढ़ने आया करते थे तभी तो इसका नाम विश्वविद्यालय पडा़...(इसी विश्वविद्यालय को अँग्रेजी में अनुवाद करके यूनिवर्सिटी नामकरण कर लिया अँग्रेजों ने..)इसमें ६० विषयों की पढा़ई होती थी..इसके बाद फ़िर ३००साल बाद यानि ४०० ईसा पूर्व नालंदा में एक विश्वविद्यालय खुला था जो शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयों की महान उपलबद्धि थी.. {*{एक मुख्य बात और कि हमारे महान भारतीय परम्परा के अनुसार चिकित्सा और शिक्षा जैसी मूलभूत चीजें मुफ़्त दी जाती थी इसलिए इन विश्वविद्यालयों में भी सारी सुविधाएँ मुफ़्त ही थी,,रहने खाने सब चीज की...इसमें प्रतिस्पर्द्धा के द्वारा बच्चों को चुना जाता था..इस विश्वविद्यालय की महानता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यहाँ पढ़ने को इच्छुक अनगिनत छात्रों को दरबान से शास्त्रार्थ करके ही वापस लौट जाना पड़ता था..आप सोच सकते हैं कि जिसके दरबान इतने विद्वान हुआ करते थे उसके शिक्षक कितने विद्वान होते होंगे...यहाँ के पुस्तकालय में इतनी पुस्तकें थी कि जब फ़िरंगियों नेर इसमें आग लगा दी तो सालों साल तक ये जलता ही रहा..}*}
*२३*सभी यूरोपीय भाषाओं की जननी संस्कृत है.और १९८७ ई० में फ़ोब्स पत्रिका ने ये दावा किया था कि कमप्युटर लैंग्वेज की सबसे उपयुक्त भाषा संस्कृत है....
*२४*मनुष्यों द्वारा ज्यात जानकारी में औषधियों का सबसे प्राचीन ग्रंथ आयुर्वेद जिसे चरक जी ने २५००ई०पूर्व संग्रहित किया था.उन्हें चिकित्सा-शास्त्र का पिता भी कहा जाता है..{*{पर हमारे धर्मग्रंथ के अनुसार तो आयुर्वेद हजारों करोडो़ साल पहले धन्वन्तरि जी लेकर आए थे समुंद्र-मंथन के समय}*}
*२५*शल्य चिकित्सा{[अभी इसी शल्य का नाम सर्जरी(surgery) हो गया है अँग्रेजी में]} का पिता शुश्रुत को कहा जाता है..२६०० साल पहले ये और इसके सहयोगी स्वास्थ्य वैज्यानिक जटिल से जटिल ऑपरेशन किया करते थे जैसे-सिजेरियन(ऑपरेशन द्वारा प्रसव),,कैटेरेक्ट(आँखों का आपरेशन),क्रित्रिम पैर,टूटी हड्डी जोड़ना,मूत्राशय का पत्थर..इन सबके अलावे मस्तिष्क की जटिल शल्य क्रिया तथा प्लास्टिक सर्जरी भी.......१२५ से ज्यादा प्रकार के साधनों का उपयोग करते थे अपने शल्य-क्रिया के लिए वे..इसके अलावे भी उन्हें इन सब चीजों की भी गहरी जानकारी थी..--anatomy(जंतुओं और पादपों की संरचना का ज्यान),,physiology(प्राणियों के शरीर में होने वाली सभी क्रियाओं का विज्यान),etiology(रोग के कारण का विज्यान),embryology(भ्रूण-विग्यान),metabolism,पाचन,जनन,प्रति
रक्षण आदि आदि...सीधे-सीधी कहूँ तो चिकित्सा सम्बंधी शायद ही ऐसा कोई ज्यान हो जो भारतीयों को ज्यात ना होगा..ये उतना विकसित था जितना अभी भी नहीं है...हमलोगों की एक कथा के अनुसार तो च्यवन ऋषि जडी़-बूटी का सेवन करके वृद्ध से युवक बन गए थे जिसके नाम पर अभी भी च्यवन-प्राश बाजार में बेचा जा रहा है...
*२६*पाँच हजार साल पहले जब अन्य देशों में लोग जंगली बने हुए थे उस समय हमारे यहाँ सिंधु घाटी और हड़प्पा की संस्कृति काफ़ी उन्नत अवस्था में थी..(हलांकि प्रमाण भले ही ५००० साल पहले तक का उपलब्ध हो पर हमारी सभ्यता-संस्कृति इससे भी पुरानी है)
*२७* ६००० साल पहले सिंधु नदी के किनारे नेविगेशन(समुंद्री यातायात या परिवहन) का विकास हो चुका था..उस समय सारे विश्व को विशाल बरगद वृक्ष के लकडी़ का नाव बनाकर भारत ही दिया करता था....ये शब्द नेविगेशन संस्कृत के नवगातिह से बना है..नौसेना जिसका अँग्रेजी शब्द नेवी(navy) है वो भी हमारे संस्कृत शब्द nau (नौ) से बना है..
*३०*सबसे पहला नदी पर बाँध सौराष्ट्र में बना था...इससे पहले के इतिहास का साक्ष्य भले ना हो पर ये सब कला इससे भी काफ़ी पुरानी है..अज भले ही भारत की प्राचीन उपलब्धियों को गिनाना पड़ रहा है क्योंकि काफ़ी लम्बे सालों के प्रयास से दुश्मनों ने इसे लगभग विलुप्त कर दिया गया है नहीं तो इसे गिनाने की जरुरत नहीं पड़ती फ़िर भी अभी भी ये संभव नहीं है कि कोई हमारी उपलब्धियों को १०-१५ वाक्य लिखकर गिना दे..ये तो अनगिनत हैं.......
*३१*अभी सब भारत को भले ही गरीब-गरीब कहकर मजाक उडा़ ले पर उस समय सारा विश्व इसपे अपनी नजरें गडा़ए रहता था..कोलंबस और वास्कोडिगामा भारत के बेशुमार धन को ही देखकर ही तो लालच में पड़ गया था तभी तो उस दुष्कर अनजान यात्रा पर निकल पडा़ जिसमें अगर उसका भाग्य ने साथ ना दिया होता तो जीवन भर समुंद्र में ही भटक-भटक कर अपने प्राण गँवा देता...और मैंने तो ये भी सुना है कि अँग्रेज १७ दिन तक या शायद एक-डेढ़ महीने तक सोना ढोता रहा था फ़िर भी यहाँ का सारा सोना इंग्लैण्ड ना ले जा पाया..वैसे छोडि़ए अँग्रेजों की बात को ये तो साले चोर-डकैत होते ही हैं अभी भले हमलोगों को चोर-डकैत कहता रहता है....बात करते हैं हमारे धर्मराज युधिष्ठिर की जिन्होंने राजसूय यज्य में सैकडो ब्राह्मणों को सोने की थाली में भोजन करवाया था और फ़िर वो थाली उन्हें दान में दे दी थी....और ये अँग्रेज जब हमलोगों को लूट रहे थे उस समय वो असभ्य,बहशी,लूटेरा,लालची,चोर-डक
ैत नहीं था अब जब हमलोगों के पास कुछ बचा नहीं लूटने को और उसके पास धन-दौलत का ढेर लग गया तो उसे डर लगने लगा कि कहीं उससे लूटा हुआ धन हमलोग छीन ना लें तो हमलोग को चोर-बदमाश कहकर बदनाम करने लगे...अभी अब शरीफ़ और सभ्य बनते हो....ये तो वही बात हुई कि १०० चूहे खाकर बिल्ली(जो अब शिकार करने में अक्षम हो गयी हो)हज करने को चली.......
चलिए अब कुछ उदार विदेशियों द्वारा भारत की महानता की स्वीकोरोक्ति---
*आइंस्टीन जी ने कहा था कि हमलोग भरतीयों के कृतघ्न हैं जिसने हमें अंकशास्त्र के ज्यान दिए नहीं तो कोई भी वैज्यानिक खोज या सिद्धान्त संभव ना हो पाता..
we owe a lot to the indians,who taught us how to count,without which no wortwhile scientific discovery could have been made...
*मार्क ट्वैन जिसने कहा था कि सारे ज्यान के खजाने भारत में ही हैं और मानव का इतिहास,भाषा और परम्परा का जन्म स्थान भारत ही है....
India is the credal of the human race,the birthplace of human speech,the mothr of history,the grandmother of legend,and the great grandmother of tradition.our most valuable and most instructive materials in the history of man are treasured up in India only...
*हु शिह,चीन का भूतपूर्व राजदूत जिन्होंने अमेरिका को कहा था कि भारत ने चीन को २००० साल पहले ही जीत लिया है..भारत की सभ्यता ने चीन की सभ्यता पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है जिसके लिए उसे एक सैनिक का भी उपयोग नहीं करना पडा़.........तो भई चीन ही क्या,,चीन जापान थाईलैण्ड जितने भी बौद्ध देश हैं सबको ज्यान बुद्ध ने दिया और उस बुद्ध को ज्यान हमने दिया..आखिर बुद्ध जी ने यहीं से तो ज्यान प्राप्त किए थे और यहीं की तो सभ्यता संस्कृति ले गए थे....
*फ़्रेंच विद्वान रोमैन रोनाल्ड का कथन--जबसे मनुष्य का अस्तित्व इस पृथ्वी पर आया तबसे अगर उसके सपने साकार होने शुरु हुए तो वो जगह पृथ्वी पर ये भारत ही है....--if there is one place on the face of earth where all the dream of living men have found a home from the very earliest days when man began the dream of existence,it is India..
आज भारतीयों की मनःस्थिति ही ऐसी हो गयी कि अपना लोग कितना भी कोछ बोल ले उसपर तब तक प्रभाव नहीं पड़ता है जबतक कि बाहर वाला उसका समर्थन ना कर दे भले ही वो बाहर वाला हमारे अपने की तुलना में कितना ही कम अनुभवी या ज्यानी क्यों ना हो इसलिए इन विदेशियों का उदाहरण देना पडा़....
जिस तरह हरेक के लिए दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता है वैसे हमलोगों के १२०० सालों से ज्यादा रात का समय कट चुका है अब दिन निकल आया है...इसका उदाहरण देख लो मित्र कि झारखण्ड राज्य की जनसँख्या ३ करोड़ की नहीं है और यहाँ ४००० करोड़ का घोटाला हो जाता है फ़िर भी ये राज्य प्रगति कर रहा है..इसलिए अपने पराधीन मानसिकता से बाहर बाहर आओ,डर को निकालो अपने अंदर से.हमें किसी दूसरे का सहारा लेकर नहीं चलना है..खुद हमारे पैर ही इतने मजबूत हैं कि पूरी दुनिया को अपने पैरों तले रौंद सकते हैं हम..हम वही हैं जिसने विश्वविजेता का सपना देखने वाले सिकंदर का दम्भ चूर-चूर कर दिया था गौरी को १६ बार अपने पैरों पर गिराकर गिड़गिडा़ने को मजबूर किया और जीवनदान दिया जिस प्रकार बिल्ली चूहे के साथ खेलती रहती है वैसे ही,,ये तो दुर्भाग्य था हमारा जो शत्रु के चंगुल में फ़ँस गए क्योंकि उस चूहे ने अपने ही की सहायता ले ली पर हमने उसे छोडा़ नहीं,अँधा हो जाने के बावजूद भी उसे मारकर मरे... जिसप्रकार जलवाष्प की नन्हीं-नन्हीं पानीं की बूँदे भी एकत्रित हो जाने पर घनघोर वर्षा कर प्रलय ला देती है,अदृश्य हवा भी गति पाकर भयंकर तबाही मचा देता है,नदी-नाले की छोटी लहरें नदी में मिलकर एक होती हैं तो गर्जना करती हुई अपने आगे आने वाली हरेक अवरोधों को हटाती हुई आगे बढ़ती रहती है वैसे ही मैं अभी भले ही जलवाष्प की एक छोटी सी बूँद हूँ पर अगर आपलोग मेरा साथ दो तो इसमें कोई शक नहीं कि हम भारतीय फ़िर से इस दुनिया को अपनी चरणों में झुका देंगे........
और मुझे पता है दोस्त,,, मेरे जैसे करोडो़ बूँदें एकीकृत होकर बरसने को बेकरार हैं इसलिए अब और ज्यादा विलम्ब ना करो और मेरे हाथ में अपना हाथ दो मित्र..............
-साभार डॉ मधुसूदन जी 

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात और शांति स्थापना

जब मुस्लिम जनसंख्या 20% से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न “सैनिक शाखायें” जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरु हो जाता है, जैसे-
इथियोपिया – मुस्लिम 32.8%
जनसंख्या के 40% के स्तर से ऊपर पहुँच जाने पर बड़ी संख्या में सामू...हिक हत्याऐं, आतंकवादी कार्रवाईयाँ आदि चलाने लगते हैं, जैसे –
बोस्निया – मुस्लिम 40%
चाड – मुस्लिम 54.2%
लेबनान – मुस्लिम 59%
जब मुस्लिम जनसंख्या 60% से ऊपर हो जाती है तब अन्य धर्मावलंबियों का “जातीय सफ़ाया” शुरु किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है, जैसे –

भाग जाना कायरता नहीं बल्कि एक मौका ढूंढने का अवसर भी भी है

लोग कहते हैं की बाबा रामदेव भाग गया....

पर भाई .. जब भगाओगे तो... भागना तो पड़ेगा ही ?

मर कर लड़ाई नहीं जीती जाती ..

ये गंधासुर की जो कहानियां हैं न, इसने पूरी पीढ़ी का सत्यानाश मार दिया....

अहिंसा.... अनशन...

भगत सिंह ने भी किया था सत्याग्रह .. लट्ठ खा कर सिद्धा हो गया था ... फिर बन्दूक ही उठाई l

अब आता हूँ मुद्दे पर....

1. भगवान् श्री कृष्ण भागे थे.... मथुरा से... द्वारिका गए..
नाम पडा रणछोड़...
परन्तु नाम की चिंता नहीं की उन्होंने...
क्योंकि वो जानते थे की वो किस कार्य के लिए धरती पर आये हैं... और जरासंध के साथ होने वाले युद्धों में समय नष्ट होगा और जान माल की हानि अलग....

एक इस्लाम मुक्त देश....जापान

क्या आप जानते है?
* क्या आपने कभी यह समाचार पढ़ा है
कि मुस्लिम राष्ट्र का कोई
प्रधानमंत्री या कोई बड़ा नेता कभी जापान
या टोकियो कि यात्रा पर गया हो?
* क्या आपने कभी किसी अख़बार में यह
भी पढ़ा है कि ईरान या सउदी अरब के राजा ने
जापान कि यात्रा कि हो?
कारण
* दुनिया में जापान ही एकमात्र ऐसा देश है
जो मुसलमानों को जापानी नागरिकता नहीं देता |
* जापान में अब किसी भी मुस्लमान
को स्थायी रूप से रहने कि इजाजत
नहीं दी जाती है |
* जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर
कड़ा प्रतिबन्ध है |
* जापान के विश्वविधालयों में अरबी या अन्य
इस्लामी राष्ट्रों कि भाषाए नहीं पढाई
जाती|
* जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान
आयत नहीं कि जा सकती|
इस्लाम से दुरी
* सरकारी आकड़ों के अनुसार, जापान में केवल
दो लाख मुसलमान है. और ये भी वही है जिन्हें
जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान कि है |
* सभी मुस्लिम नागरिक जापानी भाषा बोलते
है और जापानी भाषा में ही अपने
सभी मजहबी व्यवहार करते है |
* जापान विश्व का ऐसा देश है जहाँ मुस्लिम
देशों के दूतावास न के बराबर है |

जानिए सोनिया गाँधी के बारे में

“आप सोनिया गाँधी को कितना जानते हैं” की पहली कडी़, अंग्रेजी में इसके मूल लेखक हैं एस.गुरुमूर्ति और यह लेख दिनांक १७ अप्रैल २००४ को “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में – अनमास्किंग सोनिया गाँधी- शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ।
भारत की खुफ़िया एजेंसी “रॉ”, जिसका गठन सन १९६८ में हुआ, ने विभिन्न देशों की गुप्तचर एजेंसियों जैसे अमेरिका की सीआईए, रूस की केजीबी, इसराईल की मोस्साद और फ़्रांस तथा जर्मनी में अपने पेशेगत संपर्क बढाये और एक नेटवर्क खडा़ किया । इन खुफ़िया एजेंसियों के अपने-अपने सूत्र थे और वे आतंकवाद, घुसपैठ और चीन के खतरे के बारे में सूचनायें आदान-प्रदान करने में सक्षम थीं । लेकिन “रॉ” ने इटली की खुफ़िया एजेंसियों से इस प्रकार का कोई सहयोग या गठजोड़ नहीं किया था, क्योंकि “रॉ” के वरिष्ठ जासूसों का मानना था कि इटालियन खुफ़िया एजेंसियाँ भरोसे के काबिल नहीं हैं और उनकी सूचनायें देने की क्षमता पर भी उन्हें संदेह था । सक्रिय राजनीति में राजीव गाँधी का प्रवेश हुआ १९८० में संजय की मौत के बाद । “रॉ” की नियमित “ब्रीफ़िंग” में राजीव गाँधी भी भाग लेने लगे थे (“ब्रीफ़िंग” कहते हैं उस संक्षिप्त बैठक को जिसमें रॉ या सीबीआई या पुलिस या कोई और सरकारी संस्था प्रधानमन्त्री या गृहमंत्री को अपनी रिपोर्ट देती है), जबकि राजीव गाँधी सरकार में किसी पद पर नहीं थे, तब वे सिर्फ़ काँग्रेस महासचिव थे । राजीव गाँधी चाहते थे कि अरुण नेहरू और अरुण सिंह भी रॉ की इन बैठकों में शामिल हों । रॉ के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने दबी जुबान में इस बात का विरोध किया था चूँकि राजीव गाँधी किसी अधिकृत पद पर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गाँधी ने रॉ से उन्हें इसकी अनुमति देने को कह दिया था, फ़िर भी रॉ ने इंदिरा जी को स्पष्ट कर दिया था कि इन लोगों के नाम इस ब्रीफ़िंग के रिकॉर्ड में नहीं आएंगे । उन बैठकों के दौरान राजीव गाँधी सतत रॉ पर दबाव डालते रहते कि वे इटालियन खुफ़िया एजेंसियों से भी गठजोड़ करें, राजीव गाँधी ऐसा क्यों चाहते थे ? या क्या वे इतने अनुभवी थे कि उन्हें इटालियन एजेंसियों के महत्व का पता भी चल गया था ? ऐसा कुछ नहीं था, इसके पीछे एकमात्र कारण थी सोनिया गाँधी । राजीव गाँधी ने सोनिया से सन १९६८ में विवाह किया था, और हालांकि रॉ मानती थी कि इटली की एजेंसी से गठजोड़ सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है, राजीव लगातार दबाव बनाये रहे । अन्ततः दस वर्षों से भी अधिक समय के पश्चात रॉ ने इटली की खुफ़िया संस्था से गठजोड़ कर लिया । क्या आप जानते हैं कि रॉ और इटली के जासूसों की पहली आधिकारिक मीटिंग की व्यवस्था किसने की ? जी हाँ, सोनिया गाँधी ने । सीधी सी बात यह है कि वह इटली के जासूसों के निरन्तर सम्पर्क में थीं ।

महाभारत काल मे हुआ था परमाणु बम, मिसाइल का प्रयोग

काश हिन्दू विरोधी और तथाकथित धर्म
निरपेक्षता के घिनोने विकार से ग्रस्त
हमारे इतिहासकर शिक्षा मे यह ध्यान देते

कि विज्ञान मे हुए सर्व ‘मूल
आविष्कारों का जनक’ भारत देश है।
पिछले दिनों इस बात का खुलासा हुआ
कि मोहन जोदड़ों में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे,
जिसमें रेडिएशन का असर था । महाभारत में
सौप्टिकपर्व अध्याय १३ से १५ तक
ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गएहै । Great
Event of the 20th Century. How
they changed our lives ? इस
विश्वासाई पुस्तक में हिरोशिमा नामक
जापान के नगर पर एटम बम फेंकने के बाद
जो परिणाम हुए उसका वर्णन हैं
दोनों वर्णन मिलते झूलते हैं । यह देख हमें
विश्वास होता हैं कि 3 नवंबर ५५६१
ईसापूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र atomic
weapon अर्थात परमाणु बम ही था ।
महाभारत युद्ध का आरंभ १६ नवंबर
५५६१ ईसा पूर्व हुआ और १८ दिन चलाने
के बाद २ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व
को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने
अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । ३
नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन भीम ने
अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया ।
तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस
अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह
प्रलंकारी था । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ
तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई
जो तेजोमंडल को घिर जाने समर्थ थी ।
अंग्रेज़ भी मानने लगे है की वास्तव मे
महाभारत मे परमाणु बम का प्रयोग हुआ
था, जिस पर शोध कार्य चल रहे है । पुणे के
डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने
तो 40 वर्ष पहले ही सिद्ध
किया था कि वह महाभारत के समय
जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल
किया गया था वह परमाणु बम के समान
ही था।
परमाणु बम के जनक J. Robert
Oppenheimer ने परमाणु बम के पहले
परीक्षण के बाद एक साक्षात्कार में
कहा की परमाणु बम बनाने
की प्रेरणा उन्हें श्री मद्भागवत गीता से
मिली है।
यहाँ व्यास लिखते हैं कि “जहां ब्रहास्त्र
छोड़ा जाता है वहीं १२ व्रषों तक
पर्जन्यवृष्ठी नहीं हो पाती “।
३ नवंबर ५५६१ ईसा पूर्व के दिन
छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र और ६ अगस्त १९४५
को फेंका गया एटम बम इन दोनों के
परिणामों के साम्य अब देखें । दो घटनाओ के
बीच ७५०६ वर्ष व्यतीत हो गए है
तो भी दोनों मे पूर्ण साम्य दिखता है ।
महाभारत में बताया है की अश्वत्थामा ने
ऐषिका के साथ ब्रह्माश्त्र छोड़ा था इस
‘ऐषिका’ शब्द में ‘इष’ अर्थात ज़ोर से
फेंकना यह धातु हैं । इससे अर्थ हो जाता है
कि ऐषिका एक साधन था जिससे अस्त्र
फेंका जाता था । जैसे आज मिसाइल होते हैं
जो परमाणु बम को ढ़ोने मे कारगर होते है ।
रॉकेट को भी ऐषिका कहा जा सकता है ।
।। जयतु संस्कृतम् । जयतु भारतम् ।।

रामायण के रचयिता ... महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि संस्कृत भाषा के
आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य
'रामायण' के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध है।

महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र
वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ।
इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे।
वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिये
इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित
किया जाता है।
उपनिषद के विवरण के अनुसार ये भी अपने
भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक
बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर
को दीमकों ने अपना ढूह (बाँबी) बनाकर
ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये
दीमक-ढूह से जिसे वाल्मीकि कहते हैं, बाहर
निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
तमसा नदी के तट पर व्याध द्वारा कोंच
पक्षी के जोड़े में से एक को मार डालने पर
वाल्मीकि के मुंह से व्याध के लिए शाप के
जो उद्गार निकले वे लौकिक छंद में एक
श्लोक के रूप में थे। इसी छंद में उन्होंने नारद
से सुनी राम की कथा के आधार पर रामायण
की रचना की। कुछ लोगों का अनुमान है
कि हो सकता है, महाभारत
की भांति रामायण भी समय-समय पर कई
व्यक्तियों ने लिखी हो और अतिम रूप
किसी एक ने दिया हो और वह
वाल्मीकि की शिष्य परंपरा का ही हो..!!
.
.
एक अन्य विवरण के अनुसार इनका नाम
अग्निशर्मा था और इन्हें हर बात उलटकर
कहने में रस आता था। इसलिए ऋषियों ने
डाकू जीवन में इन्हें 'मरा' शब्द का जाप
करने की राय दी। तेरह वर्ष तक मरा रटते-
रटते यही 'राम' हो गया। बिहार के
चंपारन ज़िले का भैंसा लोटन गांव
वाल्मीकि का आश्रम था जो अब
वाल्मीकि नगर कहलाता है..!!!

ॐ जय जगदीश हरे के रचियता... श्रद्धा राम जी

ओम जय जगदीश हरे............ ये आरती उत्तर भारत में वर्षों से करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को स्वर देती रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके रचयिता पर ब्रितानी सरकार के खिलाफ प्रचार करने के आरोप भी लगेथे?
पंजाब के छोटे से शहर फिल्लौर के रहने वाले श्रद्धा राम फिल्लौरी ने इस आरती को शब्द दिए थे. 30 सितंबर को उनकी 175वीं वर्षगांठ है.
आरती में शामिल पंक्ति - 'श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा'


में श्रद्धा शब्द जहां धार्मिक श्रद्धा बढ़ाने को कहता है, वहीं ये संभवतः इसके रचयिता की तरफ भी इशारा करता है.
फिल्लौरी का हिंदी साहित्य में भी अहम योगदान रहा है. कुछ विद्वान 1888 में आए उनके उपन्यास 'भाग्यवती' को हिंदी का पहला उपन्यास मानते हैं.
फिल्लौरी के शहर और आसपास के अधिकतर लोग उनके नाम से परिचित हैं. शहर के बस अड्डे पर उनकी मूर्ति लगाई गई है. दरअसल यहां के लोगों में भी कुछ साल पहले ही उन्हें लेकर जागरुकता बढ़ी है.
श्रद्धा राम ट्रस्ट चलाने वाले अजय शर्मा कहते हैं, ''लगभग 20 साल तक ये मूर्ति नगर परिषद के दफ्तर में पड़ी रही. फिर साल 1995 में बेअंत सिंह सरकार ने इसे बाहर निकाला और इसे लगाया गया.''
वे बताते हैं, ''हर साल उनके जन्म दिवस पर यहां एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें श्रद्धा राम को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके बारे में जानकारीसाझा की जाती है. इस बार 175वीं वर्षगांठ पर कार्यक्रम कुछ बड़ा आयोजन होगा.''
श्रद्धा राम फिल्लौरी का जन्म 1837 में एक ब्राह्मण परिवार मेंहुआ था. उनके शहर के लोग बताते हैंकि जब वे महाभारत की कथा सुनाते थे तो सुनने के लिए काफी लोग जुटा करते थे.
उनकी जयंती पर उनको शत शत नमन है,,,,,
साभार : - अजय शर्मा, श्रद्धा राम ट्रस्ट / BBC HINDI
उन पर 1865 में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ प्रचार करने के आरोप लगेऔर उन्हें शहर से निकाल दिया गया था.
उन्होंने कुछ समय तक शहर से बाहर जा कर काम किया और फिर वापस अपने घर आ गए. 43 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया.
यहां के लोग श्रद्धा राम को 'पंडित जी' कह कर याद करते हैं. वे बताते हैं कि श्रद्धा राम ने अपनेज़माने में भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराईयों के खिलाफ अभियान चलाया था.
शर्मा कहते हैं कि अब उनके बारे में जानकारी बढ़ने लगी है और कुछ लोग उन पर अध्ययन भी करना चाहते हैं

दलित अछूत और मुस्लिम भाई...कैसे हिन्दू हो तुम?

सनातन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है और अनुयायियोँ के संख्या के आधार पर कभी सबसे बड़ा धर्म हुआ करता था लेकिन आज हम दुनिया मेँ चौथे नम्बर पर है क्योँ ?

पहले हमसे बौद्ध अलग हुये फिर जैन फिर सिख और आज परिस्थितियाँ ऐसी बनती जा रही हैँ कि दलित हिन्दुओँ से टूटते जा रहे है

वर्तमान मेँ हम हिन्दुऔँ और दलितोँ के ठेकेदारोँ की औछी राजनीति को दोष दे सकते हैँ या फिर कह सकते है कि हमारा धर्म उदारवादी है अन

ुयायियोँ को किसी बंधन मेँ नहीँ रखता

वक्त बदलाव चाहता है हमेँ अपने धर्म की कुरुतियोँ आडम्बरोँ को खत्म करना है

आज भी कई मन्दियोँ मेँ निम्न जाति के लोगोँ का प्रवेश वर्जित है
आज भी कई जगह उनसे मैला ढुलवाने का काम लिया जाता है बदले मेँ थोड़े से पैसे जिनसे उनके परिवार का खर्च तक नहीँ चलता
समाज के कई कार्योँ से उनको वंचित रखा जाता है गाँवोँ मेँ छुआछूत भी जारी है
और ऐसे ही लोगोँ को निशाने बनाते हैँ ईसाई मिशनरी जो थोड़े से पैसे देकर धर्मपरिवर्तन करवा लेते

जब एक ईसाई सनातन धर्म को अपनाता है तो हम फेसबुक पर महिने भर तक उसकी फोटो शेयर करते हैँ लेकिन जब निम्न जाति के लौगोँ की बस्तियाँ की बस्तियाँ हिन्दू धर्म त्यागती हैँ तो हम चुप रहते हैँ

हिन्दूत्व की पार्टी बीजेपी उच्च वर्ग के लोगोँ के लिये है उन्हेँ कौई मतलब नहीँ होता निम्न वर्ग के लोग क्योँ धर्मपरिवर्तन करते हैँ उन्हेँ शाईनिँग ईंडिया बनाना है भारत से कोई मतलब नही

एक बार मैँ एक दलित हिन्दु से हिन्दुओँ को एकजुट रहने की बात कर रहा था तो उसने मुझसे पूँछा
" क्या कभी कोइ हिन्दुत्ववादी नेता अम्बेडकर जयन्ती मनाता है ?"
मेरे पास जबाव होते हुये भी आगे बोलने की हिम्मत नहीँ बची

दलितोँ की ठेकेदार माया मैडम अगर पार्कोँ पर लगाया जाने वाला पैसा दलितोँ का आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन दूर करने पर लगाती तो वाकई दलितोँ का उत्थान होता और वे खुद प्रेरणा स्त्रोत बनते

हमारे देश मेँ दहेज के कारण ही हर जिले मेँ हर रोज कोई ना कोई आत्महत्या कर लेता है इसी कारण कन्या भ्रूण हत्या होती

फेसबुक पर Save girl child वाले पेज चलाने भी खुद को दहेज लेने से नहीँ रोक पाते
दहेज लेने वाले माँ बाप कभी ये नहीँ सोचते कि जब आप इतनी मंहगाई का रोज रोना रौते तो लड़की के माँ बात इतना सारा पैसा इकठ्ठा कैसे जुटायेँगे

सनातन धर्म तो जीवन शैली है इससे विमुख होने का कोई कारण ही नहीँ मिलेगा लोगोँ के पास अगर समाज मे कुछ बदलाव आ जाये तो
लोग कहते हैँ वर्ण व्यवस्था वेदोँ मेँ थी लेकिन वेदोँ की वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर निर्धारित होती थी ना कि जन्म के आधार पर .......

उच्च वर्ण की एक लड़की ने दलित हिन्दु लड़के से शादी कर ली तो तमिलनाड़ु के धर्मपुरी जिले के दलितोँ के तीन गाँव आग के हवाले कर दिये गये

"द हिन्दू" के अनुसार सवर्ण जाति के करीब 2500 लोगोँ ने मिलकर दलितोँ के लगभग 250 घरोँ को जला दिया और लड़की के पिता को आत्महत्या के लिये उकसाया जिसके बाद लड़की के बाप ने आत्महत्या कर ली

हमने कई केस देखेँ है जिनमेँ हिन्दु लड़की मुस्लिम लड़के से शादी कर लेती है और वर्तमान मेँ तो लव जिहाद भी चलाया जा रहा जिसमेँ बाद मेँ एक दो बच्चे पैदा करके लड़कियोँ को छोड़ दिया जाता है इसके लिये मस्जिदोँ से पैसा भी मिलता है

लेकिन इतना उग्र हिन्दुत्व कभी नहीँ दिखा

मुस्लिमोँ को अपनी बेटी सौँप सकते हो लेकिन दलितोँ को नहीँ क्योँ

लोग सेकुलरिज्म का पाठ पढाते समय एक रटा रटाया डायलोग बोलते
हिन्दु मुस्लिम का खून लाल ही होता

फिर दलित का खून पीला कैसे हो जाता

आप गौमाँस खाने वाले मुस्लिमोँ के साथ एक प्लेट मेँ खा सकते हो लेकिन दलित हिन्दुओँ के साथ नहीँ

आप मुस्लिमोँ से तीन बार गले मिल सकते हो लेकिन दलित हिन्दुओँ से नहीँ

आप मुस्लिमोँ को मंदिर पर चढ़ा सकते हो लेकिन दलितोँ को नहीँ

आप मुस्लिमोँ को भाई बोल सकते हो लेकिन दलितोँ को नहीँ

सदियोँ से तुम्हारी सेवा की दलितोँ ने मैला ढोया और आज भी करते हैँ
और मुस्लिमोँ ने क्या दिया ईतिहास देख लो महिलाओँ की इज्जत लूटी जनेऊ तुड़वाये मंदिर तोड़े

जब भी हिन्दूओं के खिलाफ कोई दंगा होता है और तो अधिकतर स्थानों पर तलवारें हमारे दलित भाई ही सँभालते है
1989 मेँ कोटा (राजस्थान) दंगे,
जहाँ अनंत चतुर्दशी की झांकी के दौरान मुस्लिमों ने भगवान राम, लक्ष्मण और सीता माता बनने वालों को काट दिया गया था। और फिर जब दलितों ने
तलवारे उठाई तो सारे मुल्ले भाग लिए थे
ऐसे कई उदाहरण हमारे आस पास मौजूद होँगे

तुम्हेँ चुनना है कौन तुम्हारा भाई है ?

विमान के आविष्कारक- पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे

राइट्स बंधु को हवाई जहाज के आविष्कार के लिए श्रेय दिया जाता है क्योंकि उन्होंने 17 दिसम्बर 1903 हवाई जहाज उड़ाने का प्रदर्शन किया था। किन्तु बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि उससे लगभग 8 वर्ष पहले सन् 1895 में संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे ने “मारुतसखा” या

“मारुतशक्ति” नामक विमान का सफलतापूर्वक निर्माण कर लिया था जो कि पू

र्णतः वैदिक तकनीकी पर आधारित था। पुणे केसरी नामक समाचारपत्र के अनुसार श्री तलपदे ने सन् 1895 में एक दिन (दुर्भाग्य से से सही दिनांक की जानकारी नहीं है) बंबई वर्तमान (मुंबई) के चौपाटी समुद्रतट में उपस्थित कई जिज्ञासु व्यक्तियों , जिनमें भारतीय अनेक न्यायविद्/ राष्ट्रवादी सर्वसाधारण जन के साथ ही महादेव गोविंद रानाडे और बड़ौदा के महाराज सायाजी
राव गायकवाड़ जैसे विशिष्टजन सम्मिलित थे, के समक्ष अपने द्वारा निर्मित “चालकविहीन” विमान “मारुतशक्ति” के उड़ान का प्रदर्शन किया था। वहाँ उपस्थित समस्त जन यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि टेक ऑफ करने के बाद “मारुतशक्ति” आकाश में लगभग 1500 फुट की ऊँचाई पर चक्कर लगाने लगा था। कुछ देर आकाश में चक्कर लगाने के के पश्चात् वह विमान धरती पर गिर पड़ा था।
यहाँ पर यह बताना अनुचित नहीं होगा कि राइट बंधु ने जब पहली बार अपने हवाई जहाज को उड़ाया था तो वह आकाश में मात्र 120 फुट ऊँचाई तक ही जा पाया था जबकि श्री तलपदे का विमान 1500 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा था। दुःख की बात तो यह है कि इस घटना के विषय में विश्व की समस्त प्रमुख वैज्ञानिको और
वैज्ञानिक संस्थाओं/संगठनों पूरी पूरी जानकारी होने के बावजूद भी आधुनिक हवाई जहाज के प्रथम निर्माण का श्रेय राईट बंधुओं को दिया जाना बदस्तूर जारी है और हमारे देश की सरकार ने कभी भी इस विषय में आवश्यक संशोधन करने/ करवाने के लिए कहीं आवाज नहीं उठाई (हम सदा सन्तोषी और आत्ममुग्ध लोग जो है!)।
कहा तो यह भी जाता है कि संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित एवं वैज्ञानिक तलपदे जी की यह सफलता भारत के तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को फूटी आँख भी नहीं सुहाई थी और उन्होंने बड़ोदा के महाराज श्री गायकवाड़, जो कि श्री तलपदे के
प्रयोगों के लिए आर्थिक सहायता किया करते थे, पर दबाव डालकर श्री तलपदे के प्रयोगों को अवरोधित कर दिया था। महाराज गायकवाड़ की सहायता बन्द हो जाने पर अपने प्रयोगों को जारी रखने के लिए श्री तलपदे एक प्रकार से कर्ज में डूब गए। इसी बीच दुर्भाग्य से उनकी विदुषी पत्नी, जो कि उनके प्रयोगों में उनकी सहायक होने के साथ ही साथ उनकी प्रेरणा भी थीं, का देहावसान हो गया और अन्ततः सन् 1916 या 1917 में श्री तलपदे का भी स्वर्गवास हो गया। बताया जाता है कि श्री तलपदे के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से “मारुतशक्ति” के अवशेष को उसकी तकनीक सहित किसी विदेशी संस्थान को बेच दिया था।
श्री तलपदे का जन्म सन् 1864 में हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्हें संस्कृत ग्रंथों, विशेषतः महर्षि भरद्वाज रचित “वैमानिक शास्त्र” (Aeronauti cal Science) में अत्यन्त रुचि
रही थी। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। पश्चिम के एक प्रख्यात भारतविद्
स्टीफन नैप (Stephen-K napp) श्री तलपदे के प्रयोगों को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। एक अन्य विद्वान श्री रत्नाकर महाजन ने श्री तलपदे के प्रयोगों पर आधारित एक पुस्तिका भी लिखी हैं।श्री तलपदे का संस्कृत अध्ययन अत्यन्त ही विस्तृत था और उनके विमान सम्बन्धित प्रयोगों के आधार निम्न ग्रंथ थेः
महर्षि भरद्वाज रचित् वृहत् वैमानिक शास्त्र
आचार्य नारायण मुन रचित विमानचन्द् रिका
महर्षि शौनिक रचित विमान यन्त्र
महर्षि गर्ग मुनि रचित यन्त्र कल्प
आचार्य वाचस्पति रचित विमान बिन्दु
महर्षि ढुण्डिराज रचित विमान ज्ञानार्क प्रकाशिका
हमारे प्राचीन ग्रंथ ज्ञान के अथाह सागर हैं किन्तु वे ग्रंथ अब लुप्तप्राय -से हो गए हैं। यदि कुछ ग रंथ कहीं उपलब्ध भी हैं तो उनका किसी प्रकार का उपयोग ही नहीं रह गया है क्योंकि हमारी दूषित शिक्षानीति हमें अपने स्वयं की भाषा एवं संस्कृति को हेय तथा पाश्चात्य भाषा एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझना ही सिखाती है।

महान कूटनीतिज्ञ एवं राजनीतिज्ञ....आचार्य चाणक्य

चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व तीसरी या चौथी शताब्दी माना जाता है । वे एक महान कूटनीतिज्ञ एवं राजनीतिज्ञ थे। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना और चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके पिता का नाम चणक था, इसी कारण उन्हें 'चाणक्य' कहा जाता है। वैसे उनका वास्तविक नाम 'विष्णुगुप्त' था। कुटिल कुल में पैदा होने के कारण वे 'कौटिल्य' भी कहलाये।

चाणक्य के जीवन से जुड़ी
हुई कई कहानियां

प्रचलित हैं। एक बार चाणक्य कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुशा नाम की कंटीली झाड़ी पर उनका पैर पड़ गया, जिससे पैर में घाव हो गया। चाणक्य को कुशा पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने वहीं संकल्प कर लिया कि जब तक कुशा को समूल नष्ट नहीं कर दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूँगा। वे उसी समय मट्ठा और कुदाली लेकर पहुंचे और कुशों को उखाड़-उखाड़ कर उनकी जड़ों में मट्ठा डालने लगे ताकि कुशा पुनः न उग आये। इस कहानी से पता चलता है कि चाणक्य कितने कठोर, दृढ संकल्प वाले और लगनशील व्यक्ति थे। जब वे किसी काम को करने का निश्चय कर लेते थे तब उसे पूरा किये बिना चैन से नहीं बैठते थे।

चाणक्य की शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला में हुई। तक्षशिला उस समय का विश्व-प्रसिद्ध विश्विद्यालय था। देश विदेश के विभिन्न छात्र वहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते थे। छात्रों को चरों वेद, धनुर्विद्या, हाथी और घोड़ों का सञ्चालन, अठारह कलाओं के साथ-साथ न्यायशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, सामाजिक कल्याण आदि के बारे में शिक्षा दी जाती थी। चाणक्य ने भी ऐसी ही उच्च शिक्षा प्राप्त की। फलतः बुद्धिमान चाणक्य का व्यक्तित्व तराशे हुए हीरे के समान चमक उठा। तक्षशिला में अपनी विद्वता और बुद्धिमत्ता का परचम फहराने के बाद वह वहीं राजनीतिशास्त्र के आचार्य बन गए। देश भर में उनकी विद्वत्ता की चर्चा होने लगी।

उस समय पाटलिपुत्र मगध राज्य की राजधानी थी और वहां घनानंद नाम का राजा राज्य करता था। मगध देश का सबसे बड़ा राज्य था और घनानंद उसका शक्तिशाली राजा। लेकिन घनानंद अत्यंत लोभी और भोगी-विलासी था। प्रजा उससे संतुष्ट नहीं थी। चाणक्य एक बार राजा से मिलने के लिए पाटलिपुत्र आये। वे देशहित में घनानंद को प्रेरित करने आये थे ताकि वे छोटे-छोटे राज्यों में बंटे देश को आपसी वैर-भावना भूलकर एकसूत्र में पिरो सकें। लेकिन घनानंद ने चाणक्य का प्रस्ताव ठुकरा दिया और उन्हें अपमानित करके दरबार से निकाल दिया। इससे चाणक्य के स्वाभिमान को गहरी चोट लगी और वे बहुत क्रोधित हुए। अपने स्वभाव के अनुकूल उन्होंने चोटी खोलकर दृढ संकल्प किया कि जब तक वह घनानंद को अपदस्थ करके उसका समूल विनाश न कर देंगे तब तक चोटी में गांठ नहीं लगायेंगे। जब घनानंद को इस संकल्प की बात पता चली तो उसने क्रोधित होकर चाणक्य को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। लेकिन जब तक चाणक्य को बंदी बनाया जाता तब तक वे वहां से निकल चुके थे। महल से बाहर आते ही उन्होंने सन्यासी का वेश धारण किया और पाटलिपुत्र में ही छिपकर रहने लगे।

एक दिन चाणक्य की भेंट बालक चन्द्रगुप्त से हुई, जो उस समय अपने साथियों के साथ राजा और प्रजा का खेल खेल रहा था। राजा के रूप में चन्द्रगुप्त जिस कौशल से अपने संगी-साथियों की समस्या को सुलझा रहा था वह चाणक्य को भीतर तक प्रभावित कर गया। चाणक्य को चन्द्रगुप्त में भावी राजा की झलक दिखाई देने लगी। उन्होंने चन्द्रगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की और उसे अपने साथ तक्षशिला ले गए। वहां चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को वेद-शास्त्रों से लेकर युद्ध और राजनीति तक की शिक्षा दी। लगभग आठ साल तक अपने संरक्षण में चन्द्रगुप्त को शिक्षित करके चाणक्य ने उसे एक शूरवीर बना दिया । उन्हीं दिनों विश्व विजय पर निकले यूनानी सम्राट सिकंदर विभिन्न देशों पर विजय प्राप्त करता हुआ भारत की ओर बढ़ा चला आ रहा था। गांधार का राजा आंभी सिकंदर का साथ देकर अपने पुराने शत्रु राजा पुरू को सबक सिखाना चाहता था।

चाणक्य को आंभी की यह योजना पता चली तो वे आंभी को समझाने के लिए गए। आंभी से चाणक्य ने इस सन्दर्भ में विस्तार पूर्वक बातचीत की, उसे समझाना चाहा, विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करने के लिए उसे प्रेरित करना चाहा; किन्तु आंभी ने चाणक्य की एक भी बात नहीं मानी। वह सिकंदर का साथ देने के लिए कटिबद्ध रहा। कुछ ही दिनों बाद जब सिकंदर गांधार प्रदेश में प्रविष्ट हुआ तो आंभी ने उसका जोरदार स्वागत किया। आंभी ने उसके सम्मान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया, जिसमें गांधार के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ-साथ तक्षशिला के आचार्य और छात्र भी आमंत्रित किये गए थे। इस सभा में चाणक्य और उनके शिष्य चन्द्रगुप्त भी उपस्थित थे। सभा के दौरान सिकंदर के सम्मान में उसकी प्रशंसा के पुल बांधे गए। उसे महान बताते हुए देवताओं से उसकी तुलना की गयी सिकंदर ने अपने व्याख्यान में अप्रत्यक्षतः भारतीयों को धमकी-सी दी कि उनकी भलाई इसी में है कि वे उसकी सत्ता स्वीकार कर लें। चाणक्य ने सिकंदर की इस धमकी का खुलकर बड़ी ही संतुलित भाषा में विरोध किया। वे विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करना चाहते थे। चाणक्य के विचारों और नीतियों से सिकंदर प्रभावित अवश्य हुआ लेकिन विश्व विजय की लालसा के कारण वह युद्ध से विमुख नहीं होना चाहता था।

सभा विसर्जन के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सहयोग से तक्षशिला के पांच सौ छात्रों को संगठित किया और उन्हें लेकर राजा पुरु से भेंट की । चाणक्य को देशहित में पुरु का सहयोग मिलने में कोई कठिनाई नहीं हुई । जल्दी ही सिकंदर ने पुरु पर चढ़ाई कर दी। पुरु को चाणक्य और चन्द्रगुप्त का सहयोग प्राप्त था, इसलिए उसका मनोबल बढ़ा हुआ था । युद्ध में पुरु और उसकी सेना ने सिकंदर के छक्के छुड़ा दिए; लेकिन अचानक सेना के हाथी विचलित हो गए, जिससे पुरु की सेना में भगदड़ मच गई। सिकंदर ने उसका पूरा-पूरा लाभ उठाया और पुरु को बंदी बना लिया । बाद में उसने पुरु से संधि कर ली। यह देखकर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर पुरु का साथ छोड़ने में ही भलाई समझी। इसके बाद चाणक्य अन्य राजाओं से मिले और उन्हें सिकंदर से युद्ध के लिए प्रेरित करते रहे । इसी बीच सिकंदर की सेना में फूट पड़ गयी। सैनिक लम्बे समय से अपने परिवारों से बिछुड़े हुए थे और युद्ध से ऊब चुके थे। इसलिए वे घर जाना चाहते थे । इधर बहरत में भी सिकंदर के विरुद्ध चाणक्य और चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में विभिन्न राजागण सिर उठाने लगे थे । यह देखकर सिकंदर ने यूनान लौटने का फैसला कर लिया। कुछ ही दिनों में बीमारी से उसकी मौत हो गई।

अब चाणक्य के समक्ष घनानंद को अपदस्थ करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने का लक्ष्य था। इस बीच चन्द्रगुप्त ने देश-प्रेमी क्षत्रियों की एक सेना संगठित कर ली थी । अतः चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर आक्रमण करने को प्रेरित किया। अपनी कूट नीति के बल पर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर विजय दिलवाई । इस युद्ध में राजा घनानंद की मौत हो गयी। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट घोषित कर दिया। बड़े जोर शोर से उसका स्वागत हुआ। चन्द्रगुप्त अपने गुरु चाणक्य को महामंत्री बनाना चाहता था किन्तु चाणक्य ने यह पद स्वीकार नहीं किया । वह मगध के पूर्व महामंत्री 'राक्षस' को ही यह पद देना चाहते थे। किन्तु राक्षस पहले ही कहीं छिप गया था और अपने राजा घनानंद की मौत का बदला लेने का अवसर ढूँढ़ रहा था। चाणक्य यह बात जानते थे। उन्होंने राक्षस को खोजने के लिए गुप्तचर लगा दिए और एक कूटनीतिक चाल द्वारा राक्षस को बंदी बना लिया। चाणक्य ने राक्षस को कोई सजा नहीं दी, बल्कि चन्द्रगुप्त को सलाह दी कि वह उसके तमाम अपराध क्षमा करके उसे महामंत्री पद पर प्रतिष्ठित करे। चाणक्य खुद गंगा के तट पर एक आश्रम बनाकर रहने लगे। वहीं से वह राज्य की रीति-नीति का निर्धारण करते और चन्द्रगुप्त को यथायोग्य परामर्श देते रहते।

अपनी प्रखर कूटनीति के द्वारा आचार्य चाणक्य ने बिखरे हुए भारतीयों को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर महान राष्ट्र की स्थापना की। किन्तु विशाल मौर्य साम्राज्य के संस्थापक होते हुए भी वे अत्यंत निर्लोभी थे। पाटलिपुत्र के महलों में न रहकर वे गंगातट पर बनी एक साधारण-सी कुटिया में रहते थे और गोबर के उपलों पर अपना भोजन स्वयं तैयार करते थे। चाणक्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य कालांतर में एक महान साम्राज्य बना। चन्द्रगुप्त ने उनके मार्गदर्शन में लगभग चौबीस वर्ष राज्य किया और पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में बंगाल और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।

आचार्य चाणक्य द्वारा रचित 'अर्थशास्त्र' एवं 'नीतिशास्त्र' नामक ग्रंथों की गणना विश्व की महान कृतियों में की जाती है। चाणक्य नीति में वर्णित सूत्र का उपयोग आज भी राजनीति के मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में किया जाता है।

पाइथागोरस से पहले आर्यभट्ट न्यूटन से पहले भास्कराचार्य...

हमारे यहां धनुष की चाप को ज्या कहते हैं। रेखागणित में इस शब्द का प्रयोग हमारे यहां ही हुआ। यहां से जब यह अरबस्तान में गया, तो वहां ई,ऊ आदि स्वर अक्षर नहीं हैं, अत: उन्होंने इसे ज-ब के रूप में लिखा। यह जब यूरोप पहुंचा तो वे जेब कहने लगे। जेब का अर्थ वहां छाती होता है। लैटिन में छाती के लिए सिनुस शब्द है। अत: इसका संक्षिप्त रूप
हुआ साइन। ऐसे अनेक शब्दों ने भारत से यूरोप तक की यात्रा अरबस्तान होकर की है। इसे कहते हैं एक शब्द की विश्व यात्रा।

पाइथागोरस प्रमेय या बोधायन प्रमेय

कल्पसूत्र ग्रंथों के अनेक अध्यायों में एक अध्याय शुल्ब सूत्रों का होता है। वेदी नापने की रस्सी को रज्जू अथवा शुल्ब कहते हैं। इस प्रकार ज्यामिति को शुल्ब या रज्जू गणित कहा जाता था। अत: ज्यामिति का विषय शुल्ब सूत्रों के अन्तर्गत आता था। उनमें बोधायन ऋषि का बोधायन प्रमेय निम्न है-

दीर्घचतुरस स्याक्ष्णया रज्जू:
पार्श्वमानी तिर्यक्मानी
यत्पृथग्भूते कुरुतस्तदुभयं
करोति। (बोधायन शुलब सूत्र १-१२)

इसका अर्थ है, किसी आयात का कर्ण क्षेत्रफल में उतना ही होता है, जितना कि उसकी लम्बाई और चौड़ाई होती है। बोधायन ने शुल्ब-सूत्र में यह सिद्धान्त दिया गया है। इसको पढ़ते ही तुरंत समझ में आता है कि यदि किसी आयत का कर्ण ब स, लम्बाई अ ब तथा चौड़ाई अ स है तो बोधायन का प्रमेय ब स२ उ अ ब२ अ अ स२ बनता है। इस प्रमेय को आजकल के विद्यार्थियों को पाइथागोरस प्रमेय नाम से पढ़ाया जाता है, जबकि यूनानी गणितज्ञ पाइथागोरस से कम से कम एक हजार साल पहले बोधायन ने इस प्रमेय का वर्णन किया है। यह भी हो सकता है कि पाइथागोरस ने शुल्ब-सूत्र का अध्ययन करने के पश्चात अपनी पुस्तक में यह प्रमेय दिया हो। जो भी हो, यह निर्विवाद है कि ज्यामिति के क्षेत्र में भारतीय गणितज्ञ आधुनिक गणितज्ञों से भी आगे थे।

बोधायन ने उक्त प्रसिद्ध प्रमेय के अतिरिक्त कुछ और प्रमेय भी दिए हैं- किसी आयत का कर्ण आयत का समद्विभाजन करता है आयत के दो कर्ण एक दूसरे का समद्विभाजन करते हैं। समचतुर्भुज के कर्ण एक दूसरे को समकोण पर विभाजित करते हैं आदि। बोधायन और आपस्तम्ब दोनों ने ही किसी वर्ग के कर्ण और उसकी भुजा का अनुपात बताया है, जो एकदम सही है।

शुल्ब-सूत्र में किसी त्रिकोण के क्षेत्रफल के बराबर क्षेत्रफल का वर्ग बनाना, वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर का वृत्त बनाना, वर्ग के दोगुने, तीन गुने या एक तिहाई क्षेत्रफल के समान क्षेत्रफल का वृत्त बनाना आदि विधियां बताई गई हैं। भास्कराचार्य की ‘लीलावती‘ में यह बताया गया है कि किसी वृत्त में बने समचतुर्भुज, पंचभुज, षड्भुज, अष्टभुज आदि की एक भुजा उस वृत्त के व्यास के एक निश्चित अनुपात में होती है।

आर्यभट्ट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र भी दिया है। यह सूत्र इस प्रकार है-

त्रिभुजस्य फलशरीरं समदल कोटी भुजार्धासंवर्ग:।

त्रिभुज का क्षेत्रफल उसके लम्ब तथा लम्ब के आधार वाली भुजा के आधे के गुणनफल के बराबर होता है। साथ दिए चित्र के अनुसार अबस उ१/२ अ ब न्‌ स प। पाई ( ) का मान- आज से १५०० वर्ष पूर्व आर्यभट्ट ने का मान निकाला था।

किसी वृत्त के व्यास तथा उसकी परिधि के (घेरे के) प्रमाण को आजकल पाई कहा जाता है। पहले इसके लिए माप १० (दस का वर्ग मूल) ऐसा अंदाजा लगाया गया। एक संख्या को उसी से गुणा करने पर आने वाले गुणनफल की प्रथम संख्या वर्गमूल बनती है। जैसे- २न्२ उ ४ अत: २ ही ४ का वर्ग मूल है। लेकिन १० का सही मूल्य बताना यद्यपि कठिन है, पर हिसाब की दृष्टि से अति निकट का मूल्य जान लेना जरूरी था। इसे आर्यभट्ट ऐसे कहते हैं-

चतुरधिकम्‌ शतमष्टगुणम्‌ द्वाषष्ठिस्तथा सहस्राणाम्‌
अयुतद्वयनिष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाह:॥

(आर्य भट्टीय-१०)

अर्थात्‌ एक वृत्त का व्यास यदि २०००० हो, तो उसकी परिधि ६२२३२ होगी।

परिधि - ६२८३२
व्यास - २००००

आर्यभट्ट इस मान को एकदम शुद्ध नहीं परन्तु आसन्न यानी निकट है, ऐसा कहते हैं। इससे ज्ञात होता है कि वे सत्य के कितने आग्रही थे।

अकबर के दरबार में मंत्री अबुल फजल ने अपने समय की घटनाओं को ‘आईने अकबरी‘ में लिखा है। वे लिखते हैं कि यूनानियों को हिन्दुओं द्वारा पता लगाये गए वृत्त के व्यास तथा उसकी परिधि के मध्य सम्बंध के रहस्य की जानकारी नहीं थी। इस बारे में ठोस परिज्ञान प्राप्त करने वाले हिन्दू ही थे। आर्यभट्ट को ही पाई का मूल्य बताने वाला प्रथम व्यक्ति बताया गया है।

।। जयतु संस्‍कृतम् । जयतु भारतम् ।।

सनातन ग्रन्थों के प्रसारक.....हनुमान पोद्दार जी

रिश्तों के आईने में सेक्युलर मीडिया,...


रिश्तों के आईने में भारतीय मीडिया

-सुज़ाना अरुंधती रॉय, प्रणव रॉय (NDTV) की भांजी हैं।

-प्रणव रॉय “काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन्स" के इंटरनेशनल सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं।


-इसी बोर्ड के एक अन्य सदस्य हैं मुकेश अम्बानी।

-प्रणव रॉय की पत्नी हैं राधिका रॉय।

-राधिका रॉय, बृन्दा करात की बहन हैं।

-बृन्दा करात, प्रकाश करात (CPI) की पत्नी हैं।

-प्रकाश करात चेन्नै के “डिबेटिंग क्लब" के सदस्य थे।

-एन राम, पी चिदम्बरम और मैथिली शिवरामन भी इस ग्रुप के सदस्य थे।

-इस ग्रुप ने एक पत्रिका शुरु की थी “रैडिकल रीव्यू"।

-CPI(M) के एक वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं सीमा चिश्ती।

-सीमा चिश्ती इंडियन एक्सप्रेस की “रेजिडेण्ट एडीटर" हैं।

-बरखा दत्त NDTV में काम करती हैं।

-बरखा दत्त की माँ हैं प्रभा दत्त।

-प्रभा दत्त हिन्दुस्तान टाइम्स की मुख्य रिपोर्टर थीं।

-राजदीप सरदेसाई पहले NDTV में थे, अब CNN-IBN के हैं।

-राजदीप सरदेसाई की पत्नी हैं सागरिका घोष।

-सागरिका घोष के पिता हैं दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर घोष।

-सागरिका घोष की आंटी रूमा पॉल हैं।

-रूमा पॉल उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश हैं।

-सागरिका घोष की दूसरी आंटी अरुंधती घोष हैं।
-अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि हैं।
-CNN-IBN का “ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क" (GBN) से व्यावसायिक समझौता है।
-GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है।
-NDTV भारत का एकमात्र चैनल है जो “अधिकृत रूप से" पाकिस्तान में दिखाया जाता है।
-दिलीप डिसूज़ा PIPFD (Pakistan-India Peoples’ Forum for Peace and Democracy) के सदस्य हैं।
-दिलीप डिसूज़ा के पिता हैं जोसेफ़ बेन डिसूज़ा।
-जोसेफ़ बेन डिसूज़ा महाराष्ट्र सरकार के पूर्व सचिव रह चुके हैं।

-तीस्ता सीतलवाड भी PIPFD की सदस्य हैं।

-तीस्ता सीतलवाड के पति हैं जावेद आनन्द।

-जावेद आनन्द एक कम्पनी सबरंग कम्युनिकेशन और एक संस्था “मुस्लिम फ़ॉर सेकुलर डेमोक्रेसी" चलाते हैं।

-इस संस्था के प्रवक्ता हैं जावेद अख्तर।

-जावेद अख्तर की पत्नी हैं शबाना आज़मी।

-करण थापर ITV के मालिक हैं।

-ITV बीबीसी के लिये कार्यक्रमों का भी निर्माण करती है।

-करण थापर के पिता थे जनरल प्राणनाथ थापर (1962 का चीन युद्ध इन्हीं के नेतृत्व में हारा गया था)।

-करण थापर बेनज़ीर भुट्टो और ज़रदारी के बहुत अच्छे मित्र हैं।

-करण थापर के मामा की शादी नयनतारा सहगल से हुई है।
-नयनतारा सहगल, विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी हैं।
-विजयलक्ष्मी पंडित, जवाहरलाल नेहरू की बहन हैं।

-मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मुख्य प्रवक्ता और कार्यकर्ता हैं।
-नबाआं को मदद मिलती है पैट्रिक मेकुल्ली से जो कि “इंटरनेशनल रिवर्स नेटवर्क (IRN)” संगठन में हैं।
-अंगना चटर्जी IRN की बोर्ड सदस्य हैं।

-अंगना चटर्जी PROXSA (Progressive South Asian Exchange Network) की भी सदस्य हैं।

-PROXSA संस्था, FOIL (Friends of Indian Leftist) से पैसा पाती है।

-अंगना चटर्जी के पति हैं रिचर्ड शेपायरो।

-FOIL के सह-संस्थापक हैं अमेरिकी वामपंथी बिजू मैथ्यू।

-राहुल बोस (अभिनेता) खालिद अंसारी के रिश्ते में हैं।

-खालिद अंसारी “मिड-डे" पब्लिकेशन के अध्यक्ष हैं।

-खालिद अंसारी एमसी मीडिया लिमिटेड के भी अध्यक्ष हैं।

-खालिद अंसारी, अब्दुल हमीद अंसारी के पिता हैं।

-अब्दुल हमीद अंसारी कांग्रेसी हैं।

-एवेंजेलिस्ट ईसाई और हिन्दुओं के खास आलोचक जॉन दयाल मिड-डे के दिल्ली संस्करण के प्रभारी हैं।

-नरसिम्हन राम (यानी एन राम) दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार “द हिन्दू" के मुख्य सम्पादक हैं।

-एन राम की पहली पत्नी का नाम है सूसन।

-सूसन एक आयरिश हैं जो भारत में ऑक्सफ़ोर्ड पब्लिकेशन की इंचार्ज हैं।

-विद्या राम, एन राम की पुत्री हैं, वे भी एक पत्रकार हैं।

-एन राम की हालिया पत्नी मरियम हैं।

-त्रिचूर में आयोजित कैथोलिक बिशपों की एक मीटिंग में एन राम, जेनिफ़र अरुल और केएम रॉय ने भाग लिया है।

-जेनिफ़र अरुल, NDTV की दक्षिण भारत की प्रभारी हैं।

-जबकि केएम रॉय “द हिन्दू" के संवाददाता हैं।

-केएम रॉय “मंगलम पब्लिकेशन" के सम्पादक मंडल सदस्य भी हैं।

-मंगलम ग्रुप पब्लिकेशन एमसी वर्गीज़ ने शुरु किया है।

-केएम रॉय को “ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन लाइफ़टाइम अवार्ड" से सम्मानित किया गया है।
-“ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन" के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं जॉन दयाल।

-जॉन दयाल “ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल" (AICC) के सचिव भी हैं।

-AICC के अध्यक्ष हैं डॉ जोसेफ़ डिसूज़ा।

-जोसेफ़ डिसूज़ा ने “दलित फ़्रीडम नेटवर्क" की स्थापना की है।

-दलित फ़्रीडम नेटवर्क की सहयोगी संस्था है “ऑपरेशन मोबिलाइज़ेशन इंडिया" (OM India)।

-OM India के दक्षिण भारत प्रभारी हैं कुमार स्वामी।

-कुमार स्वामी कर्नाटक राज्य के मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी हैं।

-OM India के उत्तर भारत प्रभारी हैं मोजेस परमार।

-OM India का लक्ष्य दुनिया के उन हिस्सों में चर्च को मजबूत करना है, जहाँ वे अब तक नहीं पहुँचे हैं।

-OMCC दलित फ़्रीडम नेटवर्क (DFN) के साथ काम करती है।

-DFN के सलाहकार मण्डल में विलियम आर्मस्ट्रांग शामिल हैं।

-विलियम आर्मस्ट्रांग, कोलोरेडो (अमेरिका) के पूर्व सीनेटर हैं और वर्तमान में कोलोरेडो क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेण्ट हैं। यह यूनिवर्सिटी विश्व भर में ईसा के प्रचार हेतु मुख्य रणनीतिकारों में शुमार की जाती है।

-DFN के सलाहकार मंडल में उदित राज भी शामिल हैं।

-उदित राज के जोसेफ़ पिट्स के अच्छे मित्र भी हैं।

-जोसेफ़ पिट्स ने ही नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देने के लिये कोंडोलीज़ा राइस से कहा था।

-जोसेफ़ पिट्स “कश्मीर फ़ोरम" के संस्थापक भी हैं।

-उदित राज भारत सरकार के नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल (राष्ट्रीय एकता परिषद) के सदस्य भी हैं।

-उदित राज कश्मीर पर बनी एक अन्तर्राष्ट्रीय समिति के सदस्य भी हैं।

-सुहासिनी हैदर, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री हैं।

-सुहासिनी हैदर, सलमान हैदर की पुत्रवधू हैं।

-सलमान हैदर, भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं, चीन में राजदूत भी रह चुके हैं।

-रामोजी ग्रुप के मुखिया हैं रामोजी राव।

-रामोजी राव “ईनाडु" (सर्वाधिक खपत वाला तेलुगू अखबार) के संस्थापक हैं।

-रामोजी राव ईटीवी के भी मालिक हैं।

-रामोजी राव चन्द्रबाबू नायडू के परम मित्रों में से हैं।

-डेक्कन क्रॉनिकल के चेयरमैन हैं टी वेंकटरमन रेड्डी।

-रेड्डी साहब कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं।

-एमजे अकबर डेक्कन क्रॉनिकल और एशियन एज के सम्पादक हैं।
-एमजे अकबर कांग्रेस विधायक भी रह चुके हैं।

-एमजे अकबर की पत्नी हैं मल्लिका जोसेफ़।

-मल्लिका जोसेफ़, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्यरत हैं।

-वाय सेमुअल राजशेखर रेड्डी आंध्र-प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।

-सेमुअल रेड्डी के पिता राजा रेड्डी ने पुलिवेन्दुला में एक डिग्री कालेज व एक पोलीटेक्नीक कालेज की स्थापना की।

-सेमुअल रेड्डी ने कहा है कि आंध्रा लोयोला कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उक्त दोनों कॉलेज लोयोला समूह को दान में दे दिये।
-सेमुअल रेड्डी की बेटी हैं शर्मिला।

-शर्मिला की शादी हुई है “अनिल कुमार" से। अनिल कुमार भी एक धर्म-परिवर्तित ईसाई हैं जिन्होंने “अनिल वर्ल्ड एवेंजेलिज़्म" नामक संस्था शुरु की और वे एक सक्रिय एवेंजेलिस्ट (कट्टर ईसाई धर्म प्रचारक) हैं।
-सेमुअल रेड्डी के पुत्र जगन रेड्डी युवा कांग्रेस नेता हैं।

-जगन रेड्डी “जगति पब्लिकेशन प्रा. लि.” के चेयरमैन हैं।

-भूमना करुणाकरा रेड्डी, सेमुअल रेड्डी की करीबी हैं।

-करुणाकरा रेड्डी, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की चेयरमैन हैं।

-चन्द्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि “लैंको समूह" को जगति पब्लिकेशन्स में निवेश करने हेतु दबाव डाला गया था।
-लैंको कम्पनी समूह, एल श्रीधर का है।
-एल श्रीधर, एल राजगोपाल के भाई हैं।

-एल राजगोपाल, पी उपेन्द्र के दामाद हैं।

-पी उपेन्द्र केन्द्र में कांग्रेस के मंत्री रह चुके हैं।

-सन टीवी चैनल समूह के मालिक हैं कलानिधि मारन
-कलानिधि मारन एक तमिल दैनिक “दिनाकरन" के भी मालिक हैं।

-कलानिधि के भाई हैं दयानिधि मारन।

-दयानिधि मारन केन्द्र में संचार मंत्री थे।

-कलानिधि मारन के पिता थे मुरासोली मारन।

-मुरासोली मारन के चाचा हैं एम करुणानिधि (तमिलनाडु के मुख्यमंत्री)।
-करुणानिधि ने "कैलाग्नार टीवी" का उदघाटन किया।

-कैलाग्नार टीवी के मालिक हैं एम के अझागिरी।

-एम के अझागिरी, करुणानिधि के पुत्र हैं।

-करुणानिधि के एक और पुत्र हैं एम के स्टालिन।

-स्टालिन का नामकरण रूस के नेता के नाम पर किया गया।

-कनिमोझि, करुणानिधि की पुत्री हैं, और केन्द्र में राज्यमंत्री हैं।

-कनिमोझी, “द हिन्दू" अखबार में सह-सम्पादक भी हैं।

-कनिमोझी के दूसरे पति जी अरविन्दन सिंगापुर के एक जाने-माने व्यक्ति हैं।

-स्टार विजय एक तमिल चैनल है।

-विजय टीवी को स्टार टीवी ने खरीद लिया है।
-स्टार टीवी के मालिक हैं रूपर्ट मर्डोक।

-Act Now for Harmony and Democracy (अनहद) की संस्थापक और ट्रस्टी हैं शबनम हाशमी।

-शबनम हाशमी, गौहर रज़ा की पत्नी हैं।

-“अनहद" के एक और संस्थापक हैं के एम पणिक्कर।

-के एम पणिक्कर एक मार्क्सवादी इतिहासकार हैं, जो कई साल तक ICHR में काबिज रहे।
-पणिक्कर को पद्मभूषण भी मिला।
-हर्ष मन्दर भी “अनहद" के संस्थापक हैं।

-हर्ष मन्दर एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।

-हर्ष मन्दर, अजीत जोगी के खास मित्र हैं।

-अजीत जोगी, सोनिया गाँधी के खास हैं क्योंकि वे ईसाई हैं और इन्हीं की अगुआई में छत्तीसगढ़ में जोर-शोर से धर्म-परिवर्तन करवाया गया और बाद में दिलीपसिंह जूदेव ने परिवर्तित आदिवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी करवाई।

-कमला भसीन भी “अनहद" की संस्थापक सदस्य हैं।

-फ़िल्मकार सईद अख्तर मिर्ज़ा “अनहद" के ट्रस्टी हैं।

-मलयालम दैनिक “मातृभूमि" के मालिक हैं एमपी वीरेन्द्रकुमार

-वीरेन्द्रकुमार जद(से) के सांसद हैं (केरल से)
-केरल में देवेगौड़ा की पार्टी लेफ़्ट फ़्रण्ट की साझीदार है।

-शशि थरूर पूर्व राजनैयिक हैं।

-चन्द्रन थरूर, शशि थरूर के पिता हैं, जो कोलकाता की आनन्दबाज़ार पत्रिका में संवाददाता थे।

-चन्द्रन थरूर ने 1959 में द स्टेट्समैन की अध्यक्षता की।

-शशि थरूर के दो जुड़वाँ लड़के ईशान और कनिष्क हैं, ईशान हांगकांग में “टाइम्स" पत्रिका के लिये काम करते हैं।
-कनिष्क लन्दन में “ओपन डेमोक्रेसी" नामक संस्था के लिये काम करते हैं।

-शशि थरूर की बहन शोभा थरूर की बेटी रागिनी (अमेरिकी पत्रिका) “इंडिया करंट्स" की सम्पादक हैं।
-परमेश्वर थरूर, शशि थरूर के चाचा हैं और वे “रीडर्स डाइजेस्ट" के भारत संस्करण के संस्थापक सदस्य हैं।

-शोभना भरतिया हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की अध्यक्ष हैं।

-शोभना भरतिया केके बिरला की पुत्री और जीड़ी बिरला की पोती हैं

-शोभना राज्यसभा की सदस्या भी हैं जिन्हें सोनिया ने नामांकित किया था।

-शोभना को 2005 में पद्मश्री भी मिल चुकी है।

-शोभना भरतिया सिंधिया परिवार की भी नज़दीकी मित्र हैं।

-करण थापर भी हिन्दुस्तान टाइम्स में कालम लिखते हैं।

-पत्रकार एन राम की भतीजी की शादी दयानिधि मारन से हुई है।

*न्यूज़ 24 की चेयरमेन है अनुराधा प्रसाद

*अनुराधा प्रसाद कांग्रेस नेता और राहुल बाबा के तलवे चट्टू चमचे राजीव शुक्ल की पत्नी है

*राजीव शुक्ल राजनीती में आने से पहले इ -टीवी हिंदी में झोला छाप पत्रकार थे
*राजीव शुक्ल ने राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को मीडिया में किसी भी तरह लाने के लिए पत्रकारिता के सारे मूल्यों और सिधान्तो को ताक पर रख दिया

*कई बार तो वे राहुल गाँधी के जूठे प्लेट उठाते और उनके जूते साफ करते भी देखे गए

*उसके इनाम में राहुल गाँधी ने उन्हें राज्य सभा का सदस्य और BCCI का वाइस प्रेसिडेंट बना दिया

*कुछ दिन पहले राहुल गाँधी के काफिले से एक आदमी घायल हो गया था
*राहुल गाँधी ने 100 नंबर पर कॉल करके अम्बुलेंस बुला लिया
*न्यूज़ 24 ने इसे "राहुल गाँधी की महानता " के तौर पर दो दिन तक दिखाया

*प्रभु चावला पहले आज तक में थे

*प्रभु चावला के बेटे के नाम है अंकुर चावला

*अंकुर चावला दिल्ली में सत्ता न जाना माना दलाल है

*नीरा राडिया टेप में प्रभु चावला का भी नाम आया
*आज तक ने प्रभु चावला को निकाल दिया
*अभी प्रभु चावला इ टीवी में है

एडमिरल सुरेश मेहता ने बरखा को कारगिल युद्ध के दौरान तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था जिसमे बरखा की लाइव कवरेज के दौरान बताये गए लोकेशन को ट्रेस कर पाकिस्तान ने तीन भारतीय जवानों को मार गिराया था,जबकि उन्हें ऐसा करने से मोर्चे पर मौजूद सैनिकों ने बार बार रोका था ,हैरानी ये कि उस वक़्त रक्षा मंत्रालय के जबरदस्त विरोध के बावजूद बरखा के खिलाफ कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकी थी
NDTV 24X7 की ग्रुप एडिटर बरखा दत्त और हिन्दुस्तान टाईम्स ग्रुप के एडिटर वीर सांघवी का नाम टेलीकॉम घोटाले के मामले में सीबीआई के दस्तावेज़ों में बतौर दलाल दर्ज है,

संसद नोटकांड मामले में CNN-IBN के एडिटर-इन-चीफ और मालिक राजदीप सरदेसाई का नाम बतौर सीडी मैनेजर सामने आया है

इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटर रहे प्रभु चावला अमर सिंह की चर्चित सीडी में डिलींग करते हुए सुनाई दे रहे हैं और उनके बेटे अंकुर चावला का नाम सीबीआई के दस्तावेजों में बतौर वित्तीय घालमेल के दलाल के तौर पर दर्ज है
ये तो सिर्फ कुछ रिश्ते उदहारण भर हैं.... हिन्दू विरोधी मीडिया .......के ....... कुछ घटनाओ की वास्तविकता और मीडिया हैड्लाइन्स के बारे में हम अगले लेखो में बताएगे ... सूचनाए कुछ पुरानी है हो सकता है कुछ त्रुटि हो अतः संशोधित स्वम करें

स्वदेशी - विदेशी कंपनियों की सूची....


दन्त मंजन / पेस्ट ==
स्वदेशी -- विको वज्रदंती, बैद्यनाथ, चोइस, नीम, डाबर , एंकर, मिस्वाक, बबूल, प्रोमिस, दन्त कांति दन्त मंजन।
विदेशी -- अधिकतर दन्त पेस्ट हड्डियों के पावडर से बनते है, जेसे कोलगेट, हिंदुस्तान


यूनिलीवर ( पहले हिन्स्तान लीवर ), क्लोस-अप, पेप्सोडेंट, एम, सिबाका, एक्वा फ्रेश, एमवे, ओरल बी, क्वांटम आदि ।

टुथ ब्रश ( दन्त साफ करने का उपकरण ) ==
स्वदेशी -- प्रोमिस, अजय, अजंता, मोनेट, रोयल, क्लास्सिक, डोक्टर स्ट्रोक ।
विदेशी -- कोलगेट, क्लोस-अप, पेप्सोडेंट, सिबाका, अक्वा फ्रेश, ओरल-बी, हिंदुस्तान यूनिलीवर ।

बाथ सोप (स्नान करने का साबुन) ==
स्वदेशी -- निरमा , मेदिमिक्स, निम्, नीमा, जस्मीन, मेसोर सेंडल, कुटीर, सहारा, पार्क अवेन्यु, सिंथोल, हिमानी ग्लिसरीन, फिर फ्लो, न १, शिकाकाई, गंगा, विप्रो, संतूर, काया कांति, काया कांति एलो वेरा ।
विदेशी -- हिंदुस्तान यूनिलीवर, लो' ओरीअल , लाइफ ब्वाय ( कोई डर नहीं ) , ले सेंसि, डेनिम, चेमी, डव, रेविओं, पिअर्स, लक्स, विवेल, हमाम, ओके, पोंड्स, क्लिअर्सिल, पमोलिवे, एमवे, जोनसन बेबी, रेक्सोना, ब्रिज , डेटोल ।

शेम्पू, ( बाल धोने के लिए ) ==
स्वदेशी -- विप्रो, पार्क अवेन्यु, स्वस्तिक, आयुर, केश निखर, हेअर एंड केअर, नैसिल, अर्निका, वेलवेट, डाबर, बजाज, नेल, लेवेंडर, गोदरेज, वाटिका ।
विदेशी --हेलो कोलगेट पामोलिव, हिंदुस्तान यूनिलीवर, लक्स, क्लिनिक प्लस, रेव्लों, लक्मे, पी एंड जी , हेड एंड शोल्डर, पेंटीन, डव, पोंड्स, ओल्ड स्पेस, शोवर तो शोवर, जोहानसन बेबी ।

कपडे / बर्तन धोने का पावडर ==
स्वदेशी -- टाटा शुद्ध, नीमा, सहारा, लो' ओरीअल , निरमा, स्वस्तिक, विमल, हिपोलिन, देना, ससा, टी सीरिज, डोक्टर देत, घडी डिटर्जन, गेंतिल, उजाला, रानिपल, निरमा, चमको, दीप
विदेशी -- हिंदुस्तान यूनिलीवर, सर्फ़, रीन, सनलाईट, व्हील, विम, अरिअल, टाइड, हेंको, रेविअल, एमवे, क्वांटम, वुल्वाश, इजी, रोबिन ब्लू, टिनापोल, स्काईलार्क

दाढ़ी / शेविंग बनाने की क्रीम ==
स्वदेशी -- पार्क अवेन्यु, प्रिमीअम, वि जोन, लो' ओरीअल , इमामी, बलसारा, गोदरेज
विदेशी -- ओल्ड स्पाइस, पामोलिव, पोंड्स, जिलेट, एरास्मिक, डेनिम, यार्डली

दाढ़ी / शेविंग पत्ती / ब्लेड ==
स्वदेशी -- टोपाज, गेलंत ( gallant), सुपरमेक्स, लसर, एस्क्वेर, सिल्वर प्रिंस, प्रिमिअम
विदेशी -- जिलेट, सेवन 'ओ' क्लोक, एरास्मिक, विल्मेन, विल्तेज आदि

क्रीम / पावडर ==
स्वदेशी -- बोरोसिल, आयुर, इमामी, विको, बोरोप्लस, बोरोलीन, हिमामी, नेल, लावेंदर, हेअर एंड केअर, निविय, हेवन्स, सिंथोल, ग्लोरी, वेलवेट (बेबी)
विदेशी -- हिंदुस्तान यूनिलीवर, फेअर एंड लवली, लक्मे, लिरिल, डेनिम, रेव्लों, पी एंड जी, ओले, क्लिएअर्सिल, क्लिएअर्तोन, चारमी, पोंड्स, ओल्ड स्पाइस, डेटोल ( ले १००% श्योर) , जॉन्सन अँड जॉन्सन

वस्त्र रेडीमेड ==
स्वदेशी -- केम्ब्रिज, पार्क अवेन्यु, ओक्जेम्बर्ग ( ओक्सेम्बेर्ग) बॉम्बे डाइंग, रफ एंड टफ, ट्रिगर, किलर जींस, पिटर इंग्लेंड, डीजे अँड सी ( DJ&C ) ये हमारी ही मानसिकता है की हमारी कंपनिया हमें लुभाने के लिए अपने उत्पादों का विदेशी नाम रखती है ।
विदेशी -- व्रेंग्लर, नाइकी, ड्यूक, आदिदास, न्यूपोर्ट, पुमा आदि

धड़ियाँ ==
स्वदेशी -- एच एम टी, टाइटन, मेक्सिमा, प्रेस्टीज, अजंता आदि
विदेशी -- राडो, तेग हिवर, स्विसको, सेको, सिटिजन, केसिओ

पेन पेन्सिल ==
स्वदेशी -- शार्प, सेलो, विल्सन, टुडे, अम्बेसेडर, लिंक, मोंतेक्स, स्टिक, संगीता, लक्जर, अप्सरा, कमल, नटराज, किन्ग्सन, रेनोल्ड, अप्सरा,
विदेशी -- पारकर, निच्कोल्सन, रोतोमेक, स्विसएअर , एड जेल, राइडर, मिस्तुबिशी, फ्लेअर, यूनीबॉल, पाईलोट, रोल्डगोल्ड

पेय ==
स्वदेशी -- दुग्ध, लस्सी, ताजे फलों के रस, निम्बू पानी,नारियल का पानी, मिल्कशेक, ठंडाई, जलजीरा, रूह अफजा, रसना, फ्रूटी, एपी फ़िज़, ग्रेपो, जम्पिं, शरबत , डावर्स , एलएमएन, जलानी जलजीरा आदि
विदेशी -- ( एक घंटे में चार कोल्ड ड्रिंक पिने से मृत्यु निश्चित है ) धीमा जहर कोका कोला, पेप्सी, फेंटा स्प्राईट, थम्स-अप, गोल्ड स्पोट, लिम्का, लहर, सेवन अप, मिरिंडा, स्लाइस, मेंगोला, निम्बुज़ आदि

चाय काफी ==
स्वदेशी -- टाटा, ब्रह्मपुत्र, असम, गिरनार, वाघ बकरी, दिव्य पेय
विदेशी --- लिप्टन, टाइगर, ग्रीन लेबल, येलो लेबल, चिअर्स, ब्रुक बोंड रेड लेबल, ताज महल, गोद्फ्रे फिलिप्स, पोलसन, गूद्रिक, सनराइस, नेस्ले, नेस्केफे, रिच , ब्रू आदि

शिशु आहार एवं दूध पावडर ===
स्वदेशी -- शहद, डाल पानी, उबले चावल, तजा फलों का रस, अमूल, इंडाना, सागर, तपन, मिल्क केअर
विदेशी --- नेस्ले, लेक्टोजन सेरेलेक, एल पी ऍफ़, मिल्क मेड, नेस्प्रे, ग्लेक्सो, फेरेक्स

कुल्फी / आइसक्रीम ==
स्वदेशी --- घर की बनी कुल्फी, अमूल, वाडीलाल, दिनेश, हवमोर, गोकुल, दिनशा, जय , पेस्तोंजी
विदेशी --- वाल्स, क्वालिटी, डोलोप्स, बास्किन एंड रोबिनस, केडबरी.. अधिकतर आइसक्रीम में जनवरी की आंतो की परत होती है

नमक ==
स्वदेशी -- टाटा, अंकुर , सूर्य, ताजा, तारा, निरमा, सेंधव नमक.
विदेशी -- अन्नपुर्णा , आशीर्वाद आटा, केप्टन कुक, हिंदुस्तान लीवर , किसान, पिल्सबरी आदि

नमकीन / स्नेक्स / चिप्स ==
स्वदेशी --- बीकाजी, बिकानो, हल्दीराम, बालाजी, हिपो , पार्ले, A1, गार्डन आदि
विदेशी -- अंकल चिप्स, पेप्सी, रफेल्स, होस्टेस, फन्मच, कुरकुरे, लेज आदि

टमाटर सौस, चटनिया, फ्रूट जेम ==
स्वदेशी -- घर के बने हुए चटनिया, इंडाना, प्रिया, रसना, फ्रूट जाम, टिल्लूराम , मनोज, सिल, निलंस, रसना, कर्नल, पंतजलि
विदेशी -- नेस्ले, ब्रुक बोंड, किसान, हेंज, फिल्ड फ्रेश, मेगी सौस

चोकलेट / दूध पावडर ==
स्वदेशी --- गुड के साथ मूंगफली या बादाम लाभप्रद है, पार्ले, बेक्मंस, क्रिमिचा, शंगरीला, इंडाना, अमूल, रावलगाँव, ब्रिटानिया.
विदेशी -- अधिकतर चोकलेट में अर्सेलिक जहर मिला होता है केडबरी, बोर्नविटा , होर्लिक्स, न्यूट्रिन, विक्स, मिल्किबर, इक्लेअर्स , मंच, पार्क, डेरिमिल्क, बोर्नविले, बिग बबल, एलपेनलिबें, सेंटरफ्रेश, फ्रूट फ्रेश, परफीती आदि

रेडीमेड खाना ==
स्वदेशी -- घर का खाना, हाथो से बनाया हुआ या किसी पास के स्वच्छ शाकाहारी होटल का
विदेशी --- मेगी, हेंज, नौर , डोमिनोज, पिज्जा हट , फ्रिन्तो-ले

पानी ==
स्वदेशी --- घर का उबला हुआ पानी, बिसलेरी, हिमालय, रेल नीर, यस, गंगा आदि
विदेशी -- एक्वाफिना, किनली, बिल्ले, पुरे लाइफ, एवियन, सेन पिल्ग्रिमो, पेरिअर आदि

शक्तिवर्धक ===
स्वदेशी --- च्यवनप्राश सबसे उत्तम ८०% तक , न्युत्रमुल, मल्तोवा, अमृत रसायन, बादाम पाक. आदि
विदेशी --- बूस्ट, पोलसन, बोर्नविटा, होर्लिक्स, प्रोतिनेक्स, स्प्राउट्स, कोमप्लैन

इलेक्ट्रोनिक्स वस्तु ==
स्वदेशी --- ओनिडा, बी पी एल, विडियोकोन, अकाई ( आज कल नाम सुनने को नहीं मिलता ) , टी- सीरिज , सलोरा, वेस्टर्न, क्रोवन, टेक्सला, गोदरेज उषा, ओरीअंट, खेतान, पी एस पी औ, बजाज, सिन्नी, शंकर, टी-सीरिज, क्राम्पटन,
विदेशी ---- सोनी, फिलिप्स, हुंदा , सेन्सुई, शार्प, एलजी, देवू , सेन्यो, नेशनल पेनासोनिक केनवुड, थोमसन, सेमसंग, हिताची, तोशिबा, कोनिका, पयोनिअर, केल्विनेटर, वर्ल्फुल, इलेक्ट्रोलक्स आई ऍफ़ बी, हायर सिंगर, महाराजा, जी इ, रेलिमिक्स, केनस्टार, मृत, ब्रोउन, नेशनल, फिलिप्स

मोबाइल फ़ोन / सेवाए ===
स्वदेशी --- मेक्स, ओनिडा, माइक्रोमेक्स, उषा-लक्सस, अजंता, ओर्पट, आइडिया, एअरटेल, रिलाइंस, टाटा इंडिकोम, एमटीएनएल, लूप, कार्बन, लावा, लेमन, भारती बीटल
विदेशी --- नोकिया, फ्लाई, मोटोरोला, एचटीसी, सोनी एरिक्सन, एसर, वर्जिन, वोडाफोन, एम टी एस , एल जी, सेमसंग, हायर, डॉकोमो आदि

खाद्य तेल सरसों का तेल ====
स्वदेशी ----, कच्ची घानी का तेल,
विदेशी ---- डालडा ब्रांड, आई टी सी ब्रांड, हिंदुस्तान यूनिलीवर ब्रांड, फिल्ड फ्रेश ब्रांड के सभी वस्तुओ का बहिष्कार करे

कंप्यूटर ===\
स्वदेशी --- एच सी एल, विप्रो
विदेशी ---- तोशिबा, एसर, एच पी, डेल, लिनोवो, सेमसंग, सोनी, आई. बी. एम. कोम्पेक आदि

दुपहिया वाहन ====
स्वदेशी ---- हीरो, बजाज ( बजाज स्कूटर के बारे में सबको पता है, एक्टिवा से कड़ी टक्कर मिलने के कारण बजाज स्कूटर की जगह एक्टिवा दीखता है हमारी सडको पर,) टी वि एस, महिंद्रा, काइनेटिक
विदेशी --- कावासाकी, होंडा, हुंडई, एक्टिवा, इटरनो, रोयल एनफील्ड, हर्ली डेविडसन, स्प्लेंडर , पेशन

वाहन ===
स्वदेशी -- लेंड रोवर, जगुआर, इंडिका, नेनो, टाटा मेजिक, बोलेरो, सुमो, सफारी, प्रेमिअर, अम्बसेदर, अशोक लेलेंड, स्वराज, महिंद्रा ट्रेक्टर, जाइलो, रेवा, अतुल, टी.व्ही.एस
विदेशी -- हुंडई, सेंट्रो, वोल्सवेगन, मर्सडीज, टोयोटा, निसान, स्कोडा, रोल्स रोयस, फेंटम, फोर्ड, जनरल, शेर्वोलेट, जोन डिअर, मारुति सुजुकी, लोगन

बैंक ===
स्वदेशी -- इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ़ बड़ोदा, बैंक ऑफ़ इंडिया, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, आई डी बी आई, केनरा बैंक, सेन्ट्रल बैंक, देना बैंक, कोर्पोरेशन बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसिस बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, सिंडिकेट बैंक, युको बैंक, पंजाब एंड सिंध बैंक, यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया, युनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया, विजया बैंक, आंध्र बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, कोटक महिंद्रा, एक्सिस बैंक, यस बैंक, इडुसलेंड बैंक, धनलक्ष्मी, बैंक, सारस्वत बैंक, फेडरल बैंक, आई एन जी वैश्य बैंक, करुर वैश्य बैंक, कर्नाटका बैंक , लक्ष्मी विलाश बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर एंड जयपुर, साउथ इंडियन बैंक, नैनीताल बैंक आदि
विदेशी ---- बैंक एचडीएफसी (HDFC), आई.सी.आई.सी.आई ( ICICI ), एबीएन एमरो, अबू धाबी बैंक, बीएनपी परिबास, सिटी बैंक, डच बैंक (Deutsche Bank), एच इस बी सी (HSBC), जे पि मोर्गन, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, तयब बैंक, स्कोटिया बैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक, एंटवर्प बैंक, अरब बंगलादेश, बैंक ऑफ़ अमेरिका, बहरीन कुवैत, टोक्यो मित्सुबिशी बैंक, बार्कले बैंक, चाइना ट्रस्ट, क्रुंग थाई बैंक, सोनाली बैंक, शिन्हन बैंक, ओमान इंटरनेशनल बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ मौरिशश, डी बैंक ऑफ़ न्युयोर्क, ऑस्ट्रेलियन बैंक, फोर्टिस बैंक, कोमन वेल्थ बैंक, रोयल बैंक ऑफ़ कनाडा, अमीरात बैंक, जर्मन बैंक,

जूते / चप्पल ===
स्वदेशी --- लिबर्टी, लखानी, स्काई, भारत लेदर, एक्शन, रिलेक्सो, पेरगोन, पोद्दार, वाइकिंग, बिल्ली, कार्नोबा, डीजे अँड सी ( DJ&C ), बफेलो, रिग
विदेशी --- पुमा, बाटा, पॉवर, बीएमसी, एडीडास, नाइकी, रिबोक, फीनिक्स, वुडलेंड, लाबेल, चेरी ब्लोसम, कीवी, ली कूपर, रेड चीफ, कोलंबस

कई ऐसी विदेशी कंपनियाँ भी है जिसमे आधे से भी कम % भारतीय पैसा लगा हुआ है तो वे भी विदेशी हुई, इसी तरह भारतीय कंपनी मे विदेशी ५०% से ज्यादा पैसा लगा है तो वह विदेशी है,
आप यह पता भी लगाए की आप जिस कंपनी का माल खरीद रहे है है क्या वह पूर्णतया स्वदेशी है ?
जेसे मारुति कंपनी मे ५४% पैसा सुजुकी कंपनी का है , और अब सरकार का इस कंपनी मे कुछ भी हिस्सा नहीं है, उसने अपना १८% हिस्सा भी शिक्षण संस्थानो को बेच दिया !
ये जरूरी नहीं की बिग बाजार कुछ विदेशी ब्रांड को अपने मॉल / ब्रांड के तले बेचता हो तो वे स्वदेशी है ! आप पता लगाए।