आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य
'रामायण' के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध है।
महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र
वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ।
इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे।
वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिये
इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित
किया जाता है।
उपनिषद के विवरण के अनुसार ये भी अपने
भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक
बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर
को दीमकों ने अपना ढूह (बाँबी) बनाकर
ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये
दीमक-ढूह से जिसे वाल्मीकि कहते हैं, बाहर
निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
तमसा नदी के तट पर व्याध द्वारा कोंच
पक्षी के जोड़े में से एक को मार डालने पर
वाल्मीकि के मुंह से व्याध के लिए शाप के
जो उद्गार निकले वे लौकिक छंद में एक
श्लोक के रूप में थे। इसी छंद में उन्होंने नारद
से सुनी राम की कथा के आधार पर रामायण
की रचना की। कुछ लोगों का अनुमान है
कि हो सकता है, महाभारत
की भांति रामायण भी समय-समय पर कई
व्यक्तियों ने लिखी हो और अतिम रूप
किसी एक ने दिया हो और वह
वाल्मीकि की शिष्य परंपरा का ही हो..!!
.
.
एक अन्य विवरण के अनुसार इनका नाम
अग्निशर्मा था और इन्हें हर बात उलटकर
कहने में रस आता था। इसलिए ऋषियों ने
डाकू जीवन में इन्हें 'मरा' शब्द का जाप
करने की राय दी। तेरह वर्ष तक मरा रटते-
रटते यही 'राम' हो गया। बिहार के
चंपारन ज़िले का भैंसा लोटन गांव
वाल्मीकि का आश्रम था जो अब
वाल्मीकि नगर कहलाता है..!!!
वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ।
इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे।
वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिये
इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित
किया जाता है।
उपनिषद के विवरण के अनुसार ये भी अपने
भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक
बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर
को दीमकों ने अपना ढूह (बाँबी) बनाकर
ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये
दीमक-ढूह से जिसे वाल्मीकि कहते हैं, बाहर
निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
तमसा नदी के तट पर व्याध द्वारा कोंच
पक्षी के जोड़े में से एक को मार डालने पर
वाल्मीकि के मुंह से व्याध के लिए शाप के
जो उद्गार निकले वे लौकिक छंद में एक
श्लोक के रूप में थे। इसी छंद में उन्होंने नारद
से सुनी राम की कथा के आधार पर रामायण
की रचना की। कुछ लोगों का अनुमान है
कि हो सकता है, महाभारत
की भांति रामायण भी समय-समय पर कई
व्यक्तियों ने लिखी हो और अतिम रूप
किसी एक ने दिया हो और वह
वाल्मीकि की शिष्य परंपरा का ही हो..!!
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एक अन्य विवरण के अनुसार इनका नाम
अग्निशर्मा था और इन्हें हर बात उलटकर
कहने में रस आता था। इसलिए ऋषियों ने
डाकू जीवन में इन्हें 'मरा' शब्द का जाप
करने की राय दी। तेरह वर्ष तक मरा रटते-
रटते यही 'राम' हो गया। बिहार के
चंपारन ज़िले का भैंसा लोटन गांव
वाल्मीकि का आश्रम था जो अब
वाल्मीकि नगर कहलाता है..!!!
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